घाघरी का घेर, ब्योलि बौ-सैमन्या बौ

प्रस्तुत गाना नेगी जी के लोकप्रिय गानों में से एक है। बारात में आया हुआ एक युवक (देवर) अपनी होने वाली भाभी (दुल्हन) के साथ सामान्य परिचय व हल्की-फुल्की मजाक कर रहा है।  ऐसे ही काल्पनिक संवाद के आधार पर यह गाना बना है। देवर अपनी भाभी के साथ परिचय बढाना चाह रहा है, और दुल्हन भी हंसी-मजाक के लहजे में उसे जवाब दे रही है। यह गीत एलबम “तीले धारो बौला” से लिया गया है, अनिल बिष्ट जी के निर्देशन में इस वी.सी.डी. को रामा कैसेट्स ने रिलीज किया…

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तुम भी सूणां मिन सुणियाली, गढ़वाल ना कुमौं जालि

असली लोककलाकार वही है जो जनता की भावना को अपनी कला के माध्यम से प्रसारित करे। सच्चे कलाकार का यह दायित्व नरेन्द्र सिंह नेगी जी सदैव निभाते रहे हैं। पहाड़ की जनता के दुखदर्द और उनकी अपेक्षाओं को अपने गीतों के माध्यम से समाज के बीच रखने का उन्होने हमेशा प्रयास किया है। नेगी जी ने उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन, चिपको आन्दोलन तथा शराब विरोधी आन्दोलन से सम्बन्धित न केवल गीत गाये बल्कि यथासम्भव इन आन्दोलनों में भागीदारी भी की। उत्तराखण्ड राज्य बनने से पहले ही लोगों ने राजधानी के लिये…

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रंग नीलु उंचा अगास को – दिखैंणा कुई नीलु

नरेन्द्र सिंह नेगी के गानों में कोमल मानवीय भावनाएं तथा जीवन का सार अन्तर्निहित रहता है। यह सुन्दर गाना देखिये-एक युवक किसी अत्यन्त सुन्दर युवती से कुछ सवाल पूछ रहा है। सामान्य रूप से देखने पर इस गाने के बोल प्रेमी द्वारा प्रेमिका को रिझाने के लिये बोले गये संवाद प्रतीत हो सकते हैं, लेकिन यदि बोलों के गूढ अर्थ को समझा जाये तो असल में कवि/गायक युवती के शारीरिक सौन्दर्य को नगण्य मानते हुए उसके अन्तर्मन की सुन्दरता को परखने की कोशिश कर रहा है। भावार्थ : आकाश का…

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सात समौंदर पार च जाणा ब्वै, जाज मां जोंलु कि ना

नरेन्द्र सिंह नेगी जी के अधिकांश गीत पारम्परिक लोकसंगीत की विभिन्न विधाओं पर आधारित होते हैं। प्रस्तुत लोकगीत "खुदेड़ गीत" का एक बेहतरीन उदाहरण है। "खुदेड़ गीत" उत्तराखण्ड के विरह वेदना, स्मृति और वियोग से भरे पारम्परिक गीत हैं। (खुद+एड़, खुद = क्षुधा या उत्कन्ठा)। नेगी जी की आवाज में ही एक अन्य खुदेड़ गीत "घुघुती घुरोण लगि म्यारा मैत की" पहले ही साइट पर दिया जा चुका है। इस गीत का समय काल द्वितीय विश्वयुद्ध का है। अंग्रेजों के शासनकाल में उत्तराखण्ड के हजारों लोगों ने दोनों विश्वयुद्धों में…

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रोग पुराणु कटे ज़िन्दगी नई ह्वैगे, तेरु मुल – मुल हैंसुणु दवाई ह्वैगे

नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने बहुत से प्रेम-गीत गाये हैं लेकिन उनके गाये कुछ प्रेम गीत ऐसे  हैं जिसमें प्रेम को लेकर एक नये तरीके के उपमानों का प्रयोग किया गया है उदाहरण के लिये उनके गाये त्यारा रूप कि झौल मां, नौंणी सी ज्यू म्यारु को ही लें जिसमें उन्होने प्रेमिका के रूप की आँच से प्रेमी के मक्खन रूपी हृदय के गलने की बात कही थी। आज प्रस्तुत है उसी तरह का एक गीत जिसमें प्रेमिका का मंद मंद मुस्कुराना प्रेमी के लिये दवाई बन जाता है। इस…

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द्वी दिन की हौरि छ अब खैरि- मुट्ट बोटीकि रख

उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आन्दोलन में अनेक लोगों ने योगदान दिया। कुछ लोग शहीद हुए तो कुछ लोगों नें अपनी कलम के माध्यम से अपनी बात रखी, चाहे वह गिरीश चन्द्र तिवारी ‘गिर्दा’ हों या फिर नरेन्द्र सिंह नेगी। नेगी जी के गाये कुछ गीत जैसे “मथि पहाड़ु बटि, निस गंगाड़ु बटि..उत्तराखण्ड आन्दोलन मां” या फिर “हिट स्यालि धर हाथ थाम्बाली चल उत्तराखंडे रैली मा, रैली मा” हम पहले ही प्रस्तुत कर चुके हैं, आज प्रस्तुत है उन्ही का गाया एक ऐसा ही गीत। “मुट्ट बोटीकि रख” यानि अपनी मुट्ठी कस…

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आवा दिदा भुलौं आवा, नांग धारति की ढकावा , डाळि बनबनी लगावा

वनों पर मानव समाज की निर्भरता हमेशा से ही रही है, लेकिन बढते जनसंख्या के दवाब और औद्यौगिकरण के लिये जंगलों के अनियंत्रित दोहन से असन्तुलन की चिन्ताजनक स्थिति पैदा हो चुकी है। इस समय “ग्लोबल वार्मिंग ” और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गम्भीर विचार-विमर्श चल रहा है लेकिन आम लोगों की सहभागिता के बिना पर्यावरण संरक्षण का कोई भी प्रयास सफल हो पायेगा ऐसा सोचना मूर्खता ही कहा जायेगा। उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति मध्य हिमालय के लिये बहुत महत्वपूर्ण और नाज़ुक है और इस इलाके के…

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