ज्यू त यन बौनूं च आज नाच नाचि की

नरेन्द्र सिंह नेगी जी और अनुराधा निराला जी की आवाज में यह प्रसिद्ध युगल गीत प्रस्तुत है। प्रेमी-प्रेमिका के लम्बे बिछोह के बाद मिलने पर  उनके हृदय की प्रसन्नता, एक दूसरे के निकट रहने की चाह और समर्पण की भावना को दर्शाता यह गाना नेगी जी के कई अन्य गानों की तरह बहुत पुराना और सदाबहार गाना है। प्रेम में डूबे हुए प्रेमी युगल इस गाने के माध्यम से एक-दूसरे के प्रति गहरे प्यार का इजहार कर रहे हैं और इस प्रेम को अक्षुण्ण रखने का संकल्प भी ले रहे…

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नया जमाना का छोरों कन उठि बौल – तिबरी डाण्डैल्युं मां रॉक ऐंड रॉल

युवा पीढी के जोशीले स्वभाव और बेपरवाह रवैये से सम्बन्धित नरेन्द्र सिंह नेगी जी का एक गाना पहले भी इस साइट पर उपलब्ध कराया गया है, आज प्रस्तुत है इसी से मिलता जुलता नेगी जी का एक और गाना। इस गाने के माध्यम से नेगी जी ने पुरानी और नयी पीढी के स्वभाव, विचारों और भावनाओं के बीच पैदा हुए अन्तर को बखूबी दिखाया है। इस दौर में पहाड़ की नई पीढी पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करते हुए अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बहुत तेजी से भुलाती जा रही है…

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मुल-मुल कैकु हैंसणि छै तू

पहाड़ के ग्रामीण परिवेश में रहने वाली महिलाओं की कष्टप्रद जिन्दगी को आधार बना कर गाये गये नरेन्द्र सिंह नेगी जी के गाने पहले भी “अपना उत्तराखंड” पर आपके लिये पेश किये गये हैं। आज इसी विषय पर नरेन्द्र सिंह नेगी जी का एक गाना प्रस्तुत है। इस गाने में एक ऐसी युवती के दिल की बातें हैं जिसने पिछली रात को अपनी शादी के बारे में एक सुन्दर सपना देखा है। अब चुंकि उसकी दिनचर्या का एक बड़ा हिस्सा जंगलों में घास काटने में ही व्यतीत होता है इसलिये…

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मेरा औंण से हर्ष हो कै त ह्वैल्यो

नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने प्रेमी-प्रेमिका को लेकर बहुत से गाने गाये हैं। जैसे “माछी पाणी सी ज्यू” या “तेरी रूप की झौल मा” लेकिन इनमें से अधिकतर गाने प्रेमी-प्रेमिका के संयोग पर ही हैं, यानि वे गाने जिनमें मिलन की खुशी है। आज हम एक ऐसा गाना प्रस्तुत कर रहे हैं जो वियोग व विरह का गाना है। यह गाना बहुत ही मधुर बन पड़ा है, वैसे कहा भी गया है ना ” हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के स्वर में गाते हैं ” । इस…

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हैंसल्ये स्य हैंसि तेरि…सदानि नि रैंण रे झ्यूंतु तेरि जमादारि

सत्ता में रहने वाले अधिकाँश लोगों ने अपने नीचे रहने वाले लोगों पर हमेशा ज्यादतियाँ ही की हैं। इसलिये शोषक व शोषित के बीच एक अघोषित युद्ध हमेशा से चलता आया है। इसी को सन्दर्भ बनाकर नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने समाज के सबसे निचले तबके के दबे-कुचले दिहाड़ी मजदूरों के उत्पीड़न को अपनी कलम से उकेरा और अपनी आवाज में गूंथ कर एक? सुन्दर गाने को रचा। प्रस्तुत है उन्ही की आवाज में यह गीत। यह गाना मजदूर और किसानों के शारीरिक व आर्थिक उत्पीड़न को मजदूरों के शब्दों…

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ना बैठ ना बैठ बिन्दी ना बैठ चरखी मां

नरेन्द्र सिंह नेगी जी का एक बहुत पुराना और प्रसिद्ध गीत है। सामान्य बोल-चाल वाले शब्दों और मधुर संगीत से बने इस गाने को नेगी जी के प्रथम पीढी के प्रशंसकों के साथ-साथ नये युवा लोग भी बहुत पसन्द करते हैं। यह गाना भी हमें दो रूपों में मिलता है। एक पुराना रूप जब यह पहली बार कैसेट के लिये गाया गया था। दूसरा रूप – जब इसी गाने को टी.सीरीज के “चली भै मोटर चली” एलबम के लिये गाया गया। दोनों रूपों के बोलों में थोड़ा अंतर है। कैसेट…

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घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की

उत्तराखण्ड का लोकसंगीत न्यौली और खुदैड़ जैसे विरह गीतों से भरा पड़ा है। इन गीतों का अधिकांश भाग विवाहित महिलाओं पर आधारित है जो विकट ससुराल के कष्टपूर्ण जीवन को कोसते हुए मायके के दिन याद करती हैं। पहाड़ के गांवों में महिलाओं का जीवन अत्यंत संघर्षशील और कष्टप्रद है। दिनभर खेत-खलिहान-जंगल, मवेशियों और घर-परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर संभालने वाली मेहनतकश, मजबूत नारी को सामान्यत: इतना अवकाश भी नहीं मिल पाता कि वह अपने मायके को याद कर पाये। लेकिन जैसे ही चैत (चैत्र) का महीना लगता है…

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