हमर उ नैनीताल

पानी से डबाडब भरा विशाल ताल और चारों ओर हरे भरे जंगलों से घिरा शहर नैनीताल। बांज, रयांज, देवदारू और सुरई के पेड़ पहाड़ों में गहरा हरा रंग भरते थे। चीना पीक, स्नो व्यू, लड़ियाकांटा, टिफिन टॉप से रुई के फाहों से बादल निकलते तो लगता नैनीताल का प्राकृतिक दृश्य-चित्र जैसे जीवंत हो उठा है। सुबह-शाम चिड़ियों का कलरव सुनाई देता था। कितना हराभरा था हमारा शहर नैनीताल! हमारे इसी शहर के निवासी जिम कार्बेट ने 1932 में अपनी पुस्तक ‘माइ इंडिया’ की भूमिका में लिखा था कि हमारे शहर…

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विभिन्न देशों के विभिन्न कलैंडर

[ पिछ्ले अंको में आपने कलैंडर के विज्ञान और भारतीय पंचांगों के इतिहास के बारे में पढ़ा। आज पढ़िये विभिन्न देशों में प्रचलित विभिन्न कलैंडरों के बारे में। श्री देवेन्द्र मेवाड़ी जी नें यह आलेख खास अपना उत्तराखंड के पाठकों के लिये भेजा है।] हम चीनी, इस्लामी और यहूदी कलैंडरों की बात कर रहे थे। चीन में नागरिक उद्देश्य के लिए ग्रेगोरीय, लेकिन उत्सव तथा त्योहारों की तिथियों की गणना के लिए विशेष परंपरागत चीनी कलैंडर का उपयोग किया जाता है। विश्व भर में चीनी मूल के लोग इसको काम…

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भारतीय पंचाग की कहानी

[ पिछ्ले अंक में हमने जाना कि कलैंडर का इतिहास कितना पुराना है। आइये जानिये कि भारतीय पंचाग का इतिहास क्या है? श्री देवेन्द्र मेवाड़ी जी नें यह आलेख खास अपना उत्तराखंड के पाठकों के लिये भेजा है। – प्रबंधक ] आइए भारतीय पंचांग यानी भारतीय कलैंडर के बारे में जानते हैं। हमारे देश में लगभग 5,000 वर्ष पहले वैदिक काल में समय की गणना का काम शुरू हो गया था। उन दिनों इस बात का ज्ञान हो चुका था कि चांद्र-वर्ष में 360 से कुछ कम दिन होते हैं…

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कलैंडर का विज्ञान

[नया साल शुरु होते ही हम अपने कलैंडर बदल लेते हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है कि कलैंडर की शुरुआत कैसे हुई? क्यों 1 जनवरी से ही वर्ष का आरम्भ माना जाता है? क्या किसी वर्ष में 365 की जगह 445 दिन भी थे? क्या किसी महीने में मात्र 21 दिन भी थे? विश्व में कितने तरह के कलैंडर प्रचलित हैं? भारतीय पंचांग की शुरुआत कैसे हुई? इन्ही प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये हम एक श्रंखला प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें आपको इन सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जायेगा।…

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उनके भी हैं अंदाजे़ बयां और…

अपनी बात दूसरों को समझाने के लिए हम क्या कुछ नहीं करते! बोलते हैं, आवाज देते हैं, मुख मुद्राएं बदलते हैं, शरीर की भाव-भंगिमाएं बनाते हैं, स्वागत  करने के लिए गले लगाते हैं, हाथ मिलाते हैं, और विदा करने के लिए हाथ हिलाते हैं। यानी, येन-केन प्रकारेण अपनी बात दूसरों को समझा देते हैं। लेकिन, इस विशाल दुनिया में केवल हम ही तो नहीं हैं, हमारे लाखों हमसफर भी हमारे साथ इसी दुनिया में जीवन का सफर तय कर रहे हैं। वे कैसे समझाते होंगे अपने साथियों को अपनी बात?…

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अनजान से बना महान

रविवार था। छुट्टी का दिन। बच्चों ने शाम को ही देवीदा से बात करके तय कर लिया था कि सुबह सैर पर निकलेंगे। गार्गी के घर पर मिलने की बात हो गई। देवीदा ठीक समय पर पहुंच गए। लेकिन, घर के सामने उदास बैठी गार्गी को देख कर चौंक गए। पूछा, “तुम तो सैर के लिए सबसे ज्यादा खुश थीं, गार्गी। अब क्या हो गया? उदास क्यों हो?” गार्गी बोली, “बस यों ही देवीदा…” “बस यों ही तो नहीं है। कोई न कोई बात जरूर है।” देवीदा बोले। तब तक…

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तो, बस जाएंगे जाकर कहीं और…

विश्वविख्यात वैज्ञानिक स्टीफेन हॉकिंग की राय मानें तो मानव जाति को अपना अस्तित्व बचाने के लिए अब ग्रह-उपग्रहों पर बसने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। मानव की अपनी करतूतों से धरती का जो हाल बेहाल होता चला जा रहा है, उसे देख कर लगता नहीं कि हमारा यह निराला ग्रह कुछ सदियों के बाद रहने लायक रह जाएगा। जीने के लिए जो कुछ प्रकृति ने दिया था, उसे हम विकास की बेतहाशा दौड़ में बर्बाद करते जा रहे हैं। हवा में दिन ब दिन और अधिक जहर घुल रहा…

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