तिग्मांशु धूलिया

‘बैंडिट क्वीन’ फिल्म के लिए संवाद लिखे, सह-निर्देशक भी रहे। ‘दिल से’ मणिरत्नम की फिल्म में भी संवाद लिखे। ए.बी.सी.एल. की फिल्म ‘तेरे मेरे सपने’ के लिए कार्य किया। अनेक टेलीफिल्मों की कहानियाँ लिखी। निर्देशन किया। विदेशी फिल्मों का सह निर्देशन किया। ‘इतना सा ख्वाब है’ फिल्म लिखी। ‘हासिल’ का निर्देशन किया। अगली फिल्म ‘चरस’ का निर्देशन कर रहा हूँ।

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नारायण सिंह (धामी) थापा

अनेक चर्चित न्यूज रीलों व डाक्यूमेंटरी फिल्मों का निर्माण; डिबू्रगढ़ बाढ़ पर बनाई गई फिल्म और ‘मित्रता की यात्रा’ अत्यंत चर्चित और प्रसंशित हुईं; ‘कांगड़ा और कुल्लू’ तथा ‘बर्फ का गीत’ फिल्मों को राष्ट्रपति स्वर्णपदक प्राप्त हुआ; फिल्म ‘एवरेस्ट’ को सर्वोत्तम फिल्म का पुरस्कार मिला। 1980 में लोक सेवा आयोग ने फिल्म प्रभाग के चीफ प्रोड्यूसर पद के लिए चयनित किया। प्रभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती नवें एशियाई खेलों पर फिल्म बनाने की थी। मुझे सेवा विस्तार देकर यह काम सौंपा गया। इस काम की उल्लेखनीय सफलता के लिए मुझे पद्मश्री सम्मान दिया गया। सेवानिवृत्ति के बाद तत्कालीन प्रधनमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम तथा जवाहरलाल नेहरू पर फिल्मों की श्रृंखला बनाने का अवसर मिला। सेवानिवृत्ति के बाद मैंने भारतीय खेल प्राधिकरण के सलाहकार के रूप में भी काम किया। 1983 में भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन ने पर्वतारोहण के लिए की गई मेरी सेवाओं को देखते हुए फाउंडेशन का सदस्य चुना। आत्मकथा ‘बाँय फ्रॉम लम्बाटा’ ‘पहाड़’ द्वारा प्रकाशित।

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धर्मेश तिवारी

दिल्ली युवा महोत्सव में स्वर्ण पदक (1967)। रेडियो (सैनिक मनोरंजन प्रभाग) में कार्य किया। 1972 में मुंबई दूरदर्शन में। अजनबी धरावाहिक का लेखन। दर्जनों धरावाहिकों व फिल्मों में काम किया और चर्चित हुआ महाभारत के कृपाचार्य बनकर। फिल्म निर्देशन में भी हाथ आजमाया। मुम्बई में सिने जगत के कलाकारों की संस्था के सचिव।

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श्रीश डोभाल

रंगमंच की शुरुआत देहरादून से की; उत्तराखण्ड के विभिन्न स्थानों में रंगमंच को रंगशालाओं के माध्यम से गति देने का प्रयास। ‘शैलनट’ नाट्य संस्था की आठ नगरों- उत्तरकाशी, कोटद्वार, टिहरी, गोपेश्वर, श्रीनगर, देहरादून, हल्द्वानी, रामनगर- में स्थापना; 2001 तक 60 से अधिक नाटकों का निर्देशन तथा 40 से अधिक नाटकों में अभिनय; पांच विदेशी नाटकों का हिन्दी में अनुवाद; लगभग 20 धारावाहिकों व टेलीफिल्मों में अभिनय तथा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त तीन फीचर फिल्मों में अभिनय; भारत में आयोजित 23 अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भाग लिया; हिमालय की सांस्कृतिक विरासत पर कुछ डाक्यूमेंटरी फिल्मों का निर्माण तथा निर्देशन; उत्तराखण्ड व दिल्ली के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, कर्नाटक, उ. प्र., गोवा आदि राज्यों में रंगकर्म कार्यशालाएँ तथा निर्देशन; फिल्म कला व तकनीक पर कार्यशालाओं में कक्षायें। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में विजिटिंग एक्सपर्ट। अनेक संस्थाओं के सहयोग से उत्तराखण्ड की ‘सांस्कृतिक नीति’ का प्रारूप तैयार करके प्रदेश सरकार को प्रस्तुत किया। मानव संसाधन मंत्रालय, सांस्कृतिक विभाग की प्रतिष्ठित सीनियर फेलोशिप प्राप्त की, जिसके अंतर्गत ‘विकलांगों के साथ रंचमंच: संभावनाएं व योगदान’ विषय पर कार्य; ‘रंगमंच में उल्लेखनीय योगदान’ के लिए अखिल भारतीय गढ़वाल सभा द्वारा सम्मानित; 2001 में ‘लक्ष्मी प्रसाद नौटियाल सम्मान’ मिला।

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पूजा डडवाल

‘हिदुंस्तान’, ‘इंतकाम’, ‘दबदबा’, ‘सिंदूर की सौगंध्’, ‘जीने नहीं दूंगी’, ‘कयामत से पहले’, ‘तुमसे प्यार हुआ’, ‘मृत्यु द ट्रुथ’, ‘मैडम नम्बर एक’ फिल्मों और जी.टी.वी. में ‘घराना’ और सब टी.वी. में ‘दुल्हन’ धारावाहिक में अभिनय।

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टॉम आल्टर्स

1972 में भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे में अभिनय में दाखिला लिया और 1974 में स्वर्णपदक के साथ डिप्लोमा पूरा किया। 1974 से बम्बई फिल्म जगत के चर्चित अभिनेता। अब तक 160 फिल्मों व 50 टीवी सीरियलों में काम कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त रंगमंच व लेखन में सक्रिय। चर्चित फिल्मों में चरस, शतरंज के खिलाड़ी, चमेली मेमसाब, क्रांति, देस परदेश, सल्तनत, राम तेरी गंगा मैली, परिंदा, आशिकी, गुमराह, सरदार, सलीम लंगड़े पे मत रो व शहीद उधम सिंह।टीवी सीरियल जुगलबंदी, भारत एक खोज, जुनून, जुबान संभाल के, घुटन, साम्राज्य, नजदीकियां, दायरे, सहर, कैप्टन व्योम व तारा उल्लेखनीय। क्रिकेट पर लिखी पुस्तक पेंगुइन बुक्स द्वारा प्रकाशित।अनेक टीवी मैगजीनों और समाचार पत्रों में खेल स्तंभों में नियमित लेखन।

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प्रसून जोशी

राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञापनों में पुरस्कार। शुभा मुदगल तथा ‘सिल्क रूट’ के ऊपर चार सुपर हिट ‘एलबम्स’ में धुन रचना के लिए पुरस्कार। फिल्म ‘लज्जा’, ‘आंखें’, ‘क्यों’ में संगीत दिया। तीन पुस्तकें प्रकाशित कीं। ‘ठण्डा मतलब कोका कोला’ एवं ‘बार्बर शॉप-ए जा बाल कटा ला’ जैसे प्रचलित विज्ञापनों हेतु अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता मिली।

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