राजा राय सिंह

जिला कलेक्टर के रूप में मथुरा में नियुक्ति। 1957 में तत्कालीन गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत के विशेष सहायक, तत्पश्चात केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय में नियुक्ति। इस दौरान शिक्षा सम्बन्धी उच्च अध्ययन हेतु सोवियत यूनियन, जर्मनी, यू.एस.ए. और जापान की यात्रा की। एक वृहद् संगठन एन.सी.ई.आर.टी. (नेशनल काउन्सिल ऑव एज्यूकेशनल रिसर्च एण्ड ट्रेनिंग) का गठन करवाया। 1964 में उनकी सेवाएँ ‘यूनेस्को’ द्वारा आमंत्रित की गईं। बैंकाक (थाईलैण्ड) स्थित मुख्यालय में उन्हें एशिया महाद्वीप और प्रशान्त क्षेत्र के एक बहुत बड़े भाग में यूनेस्को के शिक्षा सम्बन्धी कार्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई। यूनेस्को में शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम- ए.पी.आई.डी. (एशिया पैसिफिक प्रोग्राम ऑव एज्युकेशनल इनोवेशन फार डेवलपमेंट) लागू करवाया। ‘एज्युकेशन इन एशिया एण्ड पैसेफिकः ट्रेण्ड्स एण्ड डेवलपमेंट’, ‘एज्युकेशनल प्लानिंग इन एशिया’ तथा ‘एज्यूकेशन फार द फ्रयूचर’ (अंग्रेजी भाषा) उनकी चर्चित पुस्तकें हैं। शिक्षा क्षेत्र में सराहनीय सेवाओं के लिए कई एशियाई राष्ट्रों ने उन्हें सम्मानित किया तथा थाईलैण्ड विश्वविद्यालय ने मानद ‘डाक्टरेट’ की उपाधि दी।

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रतन सिंह

नन्दादेवी ईस्ट शिखर (7436 मी.द) आरोहण 1975, नन्दादेवी मुख्य शिखर (7815 मी.) आरोहण, 1981, एवरेस्ट अभियान 1984 में 8100 मी. ऊंचाई तक आरोहण, मोमोस्तंग कांगड़ी शिखर (7516 मी.) आरोहण, 1984,त्रिशूली शिखर (7035 मी.) आरोहण, 2001.

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मालती सिंह

स्थानीय संगठन खड़े किए जो अपने क्षेत्र के विकास के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं. गाँव-गाँव में बच्चों (खास कर बालिकाओं) को औपचारिक शिक्षा से जोड़ा तथा लोगों को शिक्षा के मौलिक अधिकार के लिए सक्रिय रूप से आगे आने के लिए प्रेरित किया, महिलाओं को संगठित कर अपने अधिकारों/हक हकूकों के लिए जागरूक किया। उत्तराखण्ड स्तर पर एक नेटवर्क स्थापित किया- सरोकार, जो लोगों की जमीनी लड़ाई को राज्य स्तर, राष्ट्र स्तर तक ले जाता है।

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गोविन्द सिंह

पाँच-छः वर्ष की उम्र में इलाके के एक मात्र पढ़े लिखे व्यक्ति श्री प्रयाग जोशी को झोड़े-जागर लिखते देखा तो मुझे लिखने की प्रेरणा मिली।आठ वर्ष की उम्र में पिता की मृत्यु और भयंकर गरीबी। दसवीं के बाद भाई के साथ चंडीगढ़ आगमन और पढ़ाई जारी। प्रो. महेन्द्र प्रताप से मुलाकात जिन्होंने जबर्दस्ती हिन्दी विषय लेने को प्रेरित किया और दिशाएं खुलती चली गयीं।

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कमल सिंह

डेयरी को आपरेटिव में दुग्ध संरक्षण तथा टेक्निकल इनपुट प्रोग्राम में बीस वर्ष की सेवा। उत्तरांचल में पहली बार ग्रामीण क्षेत्रों की गायों व भैंसों में एम्ब्रियो ट्रान्सफर तकनीक का सफल फील्ड प्रयोग। एम्ब्रायो ट्रान्सफर के जरिए 11 बछड़े पैदा किए। 1998 में मैं पंतनगर विश्वविद्यालय में रीडर के पद पर चयनित हुआ किन्तु मैंने विश्वविद्यालय की नौकरी के बजाय किसानों की सेवा करना जारी रखा।

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अर्जुन सिंह

पुलिस सेवा और बैंक सेवा में चयन होने के बावजूद मैंने अपने पिताजी की सलाह को मानते हुए प्रशासनिक सेवा में जाने का निश्चय किया। दूसरी बार उत्तरांचल विभाग के गठन के समय जब निहायत फालतू किस्म के व्यक्ति को इसका जिम्मा सौंपा जा रहा था, यह सोच कर कि इससे कुछ नतीजा निकलने वाला नहीं है, मैंने इस विभाग में जाने का निश्चय किया। यद्यपि मै उस वक्त बहुत अच्छी जगह पर था। अपने परिवारजनों को छोड़ कर तथा अपने शुभचिंतकों और परिजनों की नाराजगी के बावजूद मैंने देहरादून/नैनीताल के मिनि सेक्रेट्रिएट को अपनी सेवाएं देना तय किया।

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फैड्रिक स्मेटेचैक (जूनियर)

तितलियाँ, पतंगे, बीट्ल्स, बग्स, मकड़ी तथा अन्य जीवों के 12 हजार से अधिक नमूनों का संग्रह। यह एक अद्भुत तथा दुर्लभ हिमालयी संग्रह है। सोसायटी ऑव अपील फॉर वैनिशिंग इनवायरनमेंट नामक स्वैच्छिक संस्था की जुलाई 1975 में स्थापना। इसके द्वारा अनेक क्रिया-कलाप, प्रकाशन तथा एडवोकेसी का काम किया। 1982 में 90 प्रतिशत मत प्राप्त कर ग्राम प्रधान बने। नैनीताल जिले में सर्वश्रेष्ठ ग्राम सभा का इनाम पंचायती राज अधिकारी के द्वारा दिया गया। पिरूल से कोयला बनाने का प्रयोग सफल रहा। 1969-71 में चोरगल्या, सेनापानी क्षेत्र में पागल (खूनी) हाथियों को नियंत्रित किया। हिमालय में खूब घूमे हैं और हर तरह की वनस्पतियों तथा पेड़ों पर उन्होंने कार्य किया है। उनका उक्त संग्रह इसी पारिस्थितिक समझ का परिणाम है।

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