खड़क सिंह खनी

वन आंदोलन तथा शराब विरोधी आंदोलन से कापफी कुछ सीखा। ये दोनों आंदोलन उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के नेतृत्व में चले। उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी पर्वतीय युवा मोर्चा को तब्दील कर बनाई गयी थी।दैनिक हिन्ट, गाजियाबाद, दून दर्पण, देहरादून,उत्तर उजाला-हल्द्वानी, संडे पोस्ट साप्ताहिक तथा सांध्य दैनिक चेतना मंच नोएडा में संपादक। रक्त कैंसर से पिछले 5 वर्ष से लड़ रहा हूँ।

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(श्रीमती) अज़रा खान ‘नूर’

उत्तरांचल प्रदेश की स्थापना हेतु जिस प्रकार शक्ति के साथ प्रयासरत होकर आप लोगों ने सपफलता प्राप्त की, उसी प्रकार हर क्षेत्र में इस प्रदेश के उन्नयन एवं समृद्धि हेतु अपनी ओर से भरसक प्रयत्न करते रहें। पर्वतीय अंचल के युवाओं के लिए प्रचलित शब्द ‘परिश्रमी’ को सार्थक करते हुए उद्योग, व्यापार, शिक्षा-संस्कृति, साहित्य, समाज सेवा, खेलकूद आदि क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल कर अपने राज्य को देश के बेहतरीन राज्य का दर्जा दिलाने का गौरव प्राप्त करें।

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डॉ. पानू खोलिया

तीन दशक से अधिक समय तक राजस्थान में उच्च शिक्षा तथा शिक्षा प्रशासन के क्षेत्र में कार्य किया। साहित्यिक लेखन भी निरन्तर चलता रहा। अब तक तीन उपन्यास तथा तीन कहानी संग्रहों के अलावा अनेक कहानियाँ प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित

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डॉ. प्रेमलाल ग्वाड़ी

तीस पुस्तकों का सृजन, गद्य, पद्य, कहानी एवं निबंध विधा में साहित्य सृजन।उत्तराखण्ड आन्दोलन में सहभागिता.सहस्राब्दि विश्व हिन्दी सम्मेलन, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सहस्राब्दि सम्मान से सम्मानित।

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पवन कुमार गुप्ता

1976 के बाद लगभग 11-12 साल उद्योग/व्यापार करने के बाद 1989 से सामाजिक कार्य। ‘सिद्ध’ संस्था की स्थापना। शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रयोग। लेखन (जनसत्ता के लिए नियमित रूप में)। हिमालय रैबार नामक पत्रिका का पिछले 9 सालों से सम्पादन। युवाओं के बीच विचार देने/बनाने का काम।

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डॉ. राजकुमार गुप्ता

राजकीय इंटर कालेज टिहरी में जीवविज्ञान प्रवक्ता के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया और ‘डायनामिक्स ऑफ ओक-कोनीपफर फॉरेस्ट्स’ शोध कार्य किया। नैनीताल की वनस्पतियों पर ‘फ्लोरा नैनीतालेंसिस’ पुस्तक की रचना की। दो भागों में प्रकाशित एक अन्य पुस्तक ‘लिविंग हिमालया’ में भारत व विदेशों में किए गए मेरे अध्ययन सम्मिलित हैं। 1972 से 1992 के दौरान देहरादून के भूमि संरक्षण संस्थान में हिमालय के चिरंतन विकास के लिए संयुक्त जलागम प्रबंध् तकनीकों का प्रदर्शन किया। दून घाटी व फकोट क्षेत्र में फसलों की अनेक नई प्रजातियों की शुरूआत की। एफ.ए.ओ. में मुख्य तकनीकी सलाहकार के रूप में अफ्रीका में कार्य किया। 1992 में सेवानिवृत्ति के बाद सी.आर.ई.ए.टी.ई. के आनरेरी निदेशक के बतौर कार्यरत। अब तक 25 पुस्तकों और 300 से अधिक शोधपत्रों का लेखन किया है।

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घनश्याम गुरुरानी

भारतीय वायु सेना में एक महत्वपूर्ण मरम्मत विभाग का नेतृत्व। एयर मार्शल के रैंक पर वायुसेना के एयर ऑफीसर इंचार्ज (रखरखाव) के बतौर कार्य किया। उसके उपरान्त एअर ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ की अनुरक्षण कमान (नागपुर) का पदभार। भारत के राष्ट्रपति द्वारा विशिष्ट सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल तथा परम विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित।

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