जीवन सिंह रावत

एम.ए. (गोल्ड मैडल), कु.वि.वि, नैनीताल। पोस्ट डॉक्टरल हेतु फुल ब्राइट सीनियर फैलोशिप। इंडियन नेशनल साइंस अकादमी का युवा वैज्ञानिक पुरस्कार। भारतीय जीओलॉजिक सोसायटी के फैलो। प्राकृतिक संसाधनों के अभिलेखीकरण हेतु केन्द्र की स्थापना।

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पी. एस. रावत

उत्तराखण्ड की मिट्टी में मौजूद मैक्रो व माइक्रो न्यूट्रिऐंट्स का सर्व प्रथम अध्ययन किया। यह शोध एक संदर्भ अध्ययन का स्तर हासिल कर चुका है। माइक्रो न्यूट्रिऐंट्स के 6 कांबीनेशन विकसित किए जो आज विभिन्न स्तरों पर प्रयोग किए जा रहे हैं। पर्वतीय घासों पर गुणात्मक आंकड़े एकत्र किए तथा बेमौसमी सब्जियों की पोषण क्षमता का आंकलन किया। औषधीय वनस्पतियों की अनेक तकनीकों का विकास किया, जिनमें दो पेटेंट होने की प्रक्रिया में हैं। विश्व बैंक की स्वजल परियोजना के परामर्शदाता भी हैं। अब तक एक पुस्तक व अनेक मौलिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं।

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एम. एस. रावत

अन्तर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर अनेक कला तथा मूर्ति कला की स्वनिर्मित कृतियों की प्रदर्शनियाँ। कई संस्थाओं को यह कला सिखाई। दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैदियों को भी इस कला को सिखाने का सामाजिक दायित्व निभाया। वर्तमान में मानव स्थली स्कूल, दिल्ली में कला विभाग का मुखिया हैं। कार्य की स्तुति कुछ संस्थाओं अकादमियों द्वारा पुरस्कार के रूप में हुई।

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आर.एस. रावत

जूनियर विश्व कप (क्वालालाम्पुर-1982, वैंकुअर-1985). 10 देशों का हॉकी टूर्नामेंट (हांगकांग-1984). 4 देशों का हॉकी टूर्नामेंट (लंदन-1985). चैंपियंस ट्राफी (पर्थ-1985). अजलानशाह हॉकी टूर्नामेंट (मलेशिया-1985, स्वर्ण पदक). 4 देशों का टूर्नामेंट (दुबई-1986, स्वर्ण पदक). चैंपियंस ट्राफी (पाकिस्तान-1986). 4 देशों का टूर्नामेंट (कुवैत-1986). 10वें एशियाई खेल (सिओल- 1986). 6ठा विश्व कप (लंदन-1986). इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय गोल्ड कप (नई दिल्ली-1986). भारत-पाक टेस्ट मैच (भारत-पाकिस्तान, 1986). दूसरा इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय गोल्ड कप (लखनऊ-1987). 4 देशों का टूर्नामेंट (सोवियत यूनियन-1987). 4 देशों का टूर्नामेंट (केन्या-1987, स्वर्ण पदक). ओलम्पिक खेल (सिओल-1988)।

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राजिव रावत

उपरोक्त काम एक ऐसे प्रवासी के द्वारा किया गया जिसकी पिछली पीढ़ियां पौड़ी गढ़वाल के अपने गाँव से देहरादून और 70 के दशक के मध्य में कनाडा आकर बस गयीं। राजिव रावत इस नये देश के समर्पित नागरिक की तरह जवान हुआ। यद्यपि एक वर्ष की आयु में विदेश चले जाने के बावजूद मेरा अपने देश और खास तौर पर पहाड़ों की गोद से नाता बना रहा। अमेरिका के कॉरनेल विश्वविद्यालय से जीव विज्ञान में डिग्री लेने के बाद मैं उत्तर अमेरिका के सामाजिक व पर्यावरणीय आंदोलनों से जुड़ाव बना रहा। मेरी अनेक रुचियां उत्तराखण्ड के लक्ष्य में एकाकार हो गयीं। वर्ष 1997 से 2000 में उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति तक मैं एक गैर-पार्टी राजनीतिक समूह ‘उत्तराखण्ड सपोर्ट कमिटी’ का सचिव रहा। अमेरिकी और कनेडियाई उत्तराखण्डियों में सक्रिय यह संगठन उत्तराखण्ड की वेब साइट चलाती थी, एक न्यूज लेटर निकालती थी और अपने उद्देश्य के लिए जागरूकता अभियान चलाती थी। राज्य गठन के बाद मुझे ‘उत्तराखण्ड एसोसिएशन आफ नॉर्थ अमेरिका’ के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में शामिल किया गया। इसके सबसे कम उम्र के तथा प्रवासी उत्तराखंडियों की दूसरी पीढ़ी का सदस्य हूँ।

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लक्ष्मण सिंह रावत

1965 के भारत-पाक युद्ध में हिस्सा लिया. 1984 के बंबई-थाणे दंगों के नियंत्रण में विशेष भूमिका. 1988 में डिप्टी चीफ (ले. ज.) के पद से सेवानिवृत्त। तब से सामाजिक कार्यों में संलग्न। परम विशिष्टि सेवा पदक तथा अतिविशिष्ट सेवा पदक से विभूषित।

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शेर सिंह रावत

भारतीय आर्थिक सेवा में प्रवेश पाने वाले पहले उत्तराखण्डी। केन्द्र सरकार के अनेक विभागों में काम किया. सर्वाधिक (12 वर्ष) वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग में। मानचेस्टर विश्वविद्यालय में एक वर्ष तक विकासशील देशों के बारे में विशेष अध्ययन। अनेक योरोपीय तथा एशियाई देशों का भ्रमण। विकासशील अर्थशास्त्र, अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र तथा परियोजना मूल्यांकन जैसे विषयों के विशेषज्ञ। 1996 में भारत सरकार में आर्थिक सलाहकार पद से सेवानिवृत्त हुए।

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