अपने परिवार के हित व सुखों के लिये अपने सारे ऐशो-आराम छोड़कर सारा दिन जंगलों और खेतों में मेहनत-मजदूरी करना ग्रामीण पहाड़ी महिलाओं की दिनचर्या रही है। इस विषय पर कई लेख, कविताएं, किताबें और शोध किये जा सकते हैं लेकिन नरेन्द्र सिंह नेगी जी का यह गाना ही पहाड़ी महिलाओं की कष्टप्रद जिन्दगी का एक स्पष्ट चित्र सामने रखने के लिये पर्याप्त है। इस अन्यन्त भावुक गाने को सुनते-सुनते पता नहीं कितने लोगों की आंखों में आंसूं टपके होंगे, इसका अन्दाजा लगाना सम्भव नही है।
नरेन्द्र सिंह नेगी जी के गीतों में पहाड़ के हर वर्ग का दुख झलकता है, महिलाओं की सोचनीय स्थिति पर नेगी जी ने विशेष रूप से कई गाने गाये और इनमें से अधिकांश गाने दशकों से उनके प्रशंसकों की कई पीढियां सुन रही हैं। कुछ गाने जैसे बाला सै जांदी या सुमा हे निहुण्या सुमा या फिर नारंगि की दाणि पहले ही हम प्रस्तुत कर चुके हैं। आज प्रस्तुत है इसी क्रम में एक और दर्द भरा गीत।
भावार्थ : हमारे पहाड़ की बहू-बेटियां एक ओर तो प्रीत की डोर की तरह बहुत नाजुक हैं लेकिन दूसरी ओर वह पर्वत के समान कठोर भी हैं।
सुबह होती ही वह अपना सारा खाना-पीना भूल कर काम-धंधों में जुट जाती हैं, इनके लिए तो बस कर्म ही पूजा है, ऐसा लगता है कि हमारे जो खेत-खलिहान हरे भरे हुए हैं वो सिर्फ इनके पसीने की सिंचाई से ही हुए हैं। ऐसी हैं हमारे पहाड़ की बहू-बेटियाँ।
बारिश के मौसम में ये वनों में भीगती हैं तो इनकी काया खेतों में काम करते हुए तेज धूप में सूखती है, सोलह श्रृंगार क्या होते है ये तो जैसे इन्हें पता ही नही है, देखो तो कैसे इनके होंठ और गाल फटे हुए हैं, ये लगातार काम के बोझ के नीचे दबी हुई रहती हैं। ऐसी हैं हमारे पहाड़ की बहू-बेटियाँ।
दुख के आंसुओं से इनकी आंखें लबालब भरी हुईं हैं, लेकिन मन की बात तो मन में ही दबी पड़ी है, शरीर तो इनका घर पर है लेकिन नजर परदेश पर टिकी है। पति के इन्तजार में इनकी सांसें टंगी हुई हैं लेकिन दिल में आस लगी हुई है, सच में इनकी तो महिमा ही न्यारी है। ऐसी हैं हमारे पहाड़ की बहू-बेटियाँ।
दुख-बीमारी में भी इनका काम कभी टलता नहीं है, कभे रुकता नहीं, घर-जंगल और खेतों की जिम्मेदारी इन अकेले कन्धों पर है, हम ने तो कभी इन्हें न सोते हुए देखा और न ही बिस्तर से उठते हुए (सुबह सबसे पहले जगना, रात को अन्त में सोना), ऐसा लगता है कि सुबह उठकर सूर्य देव को भी जैसे यही जगाती हैं, अरे इनसे तो विधाता भी हार जायेगा। ऐसी हैं हमारे पहाड़ की बहू-बेटियाँ।
गीत के बोल देवनागिरी में
प्रीत की कुंगली डोर सी छिन ये
प्रीत की कुंगली डोर सी छिन ये, पर्वत जन कठोर भी छिन ये
हमारा पहाड़ों की नारी.. बेटी ब्वारी,
बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी, बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी
बिनसिरि बटि धाण्यू मां लगीण, स्यैणी खाणी सब हरचिन
बिनसिरि बटि धाण्यू मां लगीण, स्यैणी खाणी सब हरचिन
करम ही धरम काम ही पूजा, यूं कै पसिन्यांन हरि-भरिन
पुंगड़ी पटली हमारी – बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी, बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी
बरखा बत्वाण्युंन बन मां रुझि छिन, पुंगड़्यूँ मां घामन गाती सुखीं छिन
बरखा बत्वाण्युंन बन मां रुझि छिन, पुंगड़्यूँ मां घामन गाती सुखीं छिन
सौ सिंगार क्या हुन्द नि जाणी
फिफ्ना फट्यां छिन, गलोड़ी तिड़ी छिन
काम का बोझ की मारी- बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी, बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी
खैरी का आँसुल आंखी भोरीं चा, मन की स्यांणि गाणी मारीं चा
खैरी का आँसुल आंखी भोरीं चा, मन की स्यांणि गाणी मारीं चा
सरैल घर मां टक परदेश, सांस चनि छिन आस लगीं चा
यूँ की महिमा न्यारी – बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी, बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी
दुःख बीमारी मां भी काम नि टाली, घर बण रुसड़ु याखुली समाली
दुःख बीमारी मां भी काम नि टाली, घर बण रुसड़ु याखुली समाली
स्यैंद नि पै कभी बिजदा नि देखि, रतब्याणुं सूरिज भी यूनी बिजाली
यूं से बिधाता भी हारी – बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी, बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी
प्रीत की कुंगली डोर सी छिन ये
पर्वत जन कठोर भी छिन ये
हमारा पहाड़ों की नारी.. बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी, बेटी ब्वारी पहाड़ू की बेटी ब्वारी
गीत : [audio:beti-bwari-pahadon-ki-by-merapahad-dot-com.mp3]
इस गीत का चुनाव व हिन्दी अर्थ हमारे सदस्य और लेखक हेम पंत का है।
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Lyrics of the song ” beti bvari pahadoo kee beti bvari”
prit kee kungali dor si chhin ye
prit kee kungali dor si chhin ye, parvat jan kathor bhi chhin ye
hamara pahadon kee nari.. beti bvari,
beti bvari pahadoo kee beti bvari, beti bvari pahadoo kee beti bvari
binasiri bati dhanyoo man laginn, syaini khani sab harachin
binasiri bati dhanyoo man laginn, syaini khani sab harachin
karam hi dharam kam hi pooja, yoon kai pasinyann hari-bharin
pungadi patali hamari – beti bvari
beti bvari pahadoo kee beti bvari, beti bvari pahadoo kee beti bvari
barakha batvanyunn ban man rujhi chhin, pungadyoon man ghaman gati sukhin chhin
barakha batvanyunn ban man rujhi chhin, pungadyoon man ghaman gati sukhin chhin
sau singar kya hund ni jani
fifna fatyan chhin, galodi tidi chhin
kam ka bojh kee mari- beti bvari
beti bvari pahadoo kee beti bvari, beti bvari pahadoo kee beti bvari
khairi ka aansul aankhi bhorin cha, man kee syanni gani marin cha
khairi ka aansul aankhi bhorin cha, man kee syanni gani marin cha
sarail ghar man tak paradesh, sans chani chhin aas lagin cha
yoon kee mahima nyari – beti bvari
beti bvari pahadoo kee beti bvari, beti bvari pahadoo kee beti bvari
duhkh bimari man bhi kam ni tali, ghar ban rusadu yakhuli samali
duhkh bimari man bhi kam ni tali, ghar ban rusadu yakhuli samali
syaind ni pai kabhi bijada ni dekhi, ratabyanun soorij bhi yooni bijali
yoon se bidhata bhi hari – beti bvari
beti bvari pahadoo kee beti bvari, beti bvari pahadoo kee beti bvari
prit kee kungali dor si chhin ye
parvat jan kathor bhi chhin ye
hamara pahadon kee nari.. beti bvari
beti bvari pahadoo kee beti bvari, beti bvari pahadoo kee beti bvari
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“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी.
आंचल में दूध, आखों में पानी..”
जीवट व्यक्तित्व वाली पहाड़ की महिलाओं को सलाम
gita bhaut badheeya lagee aap ko so……….
Hem Pantji,
AAP ko bahut dhanyavad ki apne hame jo chahiye tha woh prastut kiya.
Isi tarah aap ak ke bad ak geet upload kariye.
Uttarakhand ka itana achchha sangeet or geet pure hindustan samaj sake or manse ahsas kar sake.
Dr Jyot
09998213492
Pahari narion ki byatha tab aur bhi dukhdayak hoti hai jab naukari ke waste pati ko door rahana padata hai aur aptni uske sath nahi rah pati
No one can describe hardship of our Pahaari fellow better than Negiji…Salute to u Sir…