विनय मार डबराल

अब तक एक हजार से अधिक कहानियां तथा 13 उपन्यास लिखे हैं। संग्रह के रूप में 11 कहानी संग्रह, 2 उपन्यास व 3 आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। युवाओं के नाम संदेशः प्रत्येक मनुष्य के पास कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है। हमें अपनी प्रतिभा को दबाना नहीं चाहिए, बल्कि उसे देशहित में लगाना चाहिए। फल तो स्वयं मिलता है। उसे मांगने की आवश्यकता नहीं।

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रघुनन्दन सिंह टोलिया

उत्तराखण्ड राज्य के गठन में कौशिक कमेटी रिपोर्ट को सफलता पूर्वक पूर्ण कर, भारत सरकार को प्रेषण। सिविल सेवा में 1971 में प्रवेश करने पर यह निर्णय किया था कि उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक इतिहास में जो कुछ धुंधलापन है उसे साफ करने का प्रयास करूंगा। 1815 से 1858 तक काफी सीमा तक व्यवस्थित कर सका इसे। 1859 से 1884 तक अभी और व्यवस्थित करना है। सेवा में आने के बाद उत्तराखण्ड के आर्थिक विकास में योगदान करने की सेवा पर्यन्त (32 वर्ष) कोशिश। आज यह दुग्ध विकास, चाय विकास, जड़ी-बूटी व सुगंध पौध के क्षेत्र में कुछ दिखाई भी पड़ता है। अग्रेतर जैविक कृषि, बांस व रिंगाल तथा रेशा को शेष सेवा काल व सेवानिवृत्ति के उपरान्त एक मिशन के रूप में लेने की इच्छा।जन सहभागिता के क्षेत्र में थोड़ी बहुत सफलता।

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धर्म पाल अग्रवाल

1958 में एक्सप्लोरेशन एसिस्टेंट के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में काम करना शुरू किया। नौकरी व अध्ययन जारी रखते हुए 1972 में राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला, अहमदाबाद में असिस्टेंट प्रोपफेसर नियुक्त हुए और 1993 में विभाग के चेयरमैन पद तक पहुंचे। उच्च कोटि के शोधकार्य के कारण आप अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पुरातत्वविद् माने जाते हैं। अब तक अनेक पुरस्कारों व पदकों से नवाजे जा चुके हैं। विज्ञान सम्बंधी अनेक पत्रिकाओं से सम्बद्ध हैं। अमेरिका व जापान सहित विश्व के कई देशों के विश्वविद्यालयों में शोधवृत्ति प्राप्त की और व्याख्यान दिए। अब तक लगभग 230 शोधपत्र तथा 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सेवानिवृत्ति के बाद आप पुनः अपने पैतृक नगर अल्मोड़ा वापस लौट आए और अब यहीं रह कर उत्तराखण्ड के उत्थान के लिए सक्रिय हैं।

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यशवन्त सिंह कठोच

प्रारम्भ में हिन्दी में अनेक कविताएँ, लघु कथाएँ एवं निबन्ध लिखे। इसके बाद 1965 से भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्त्व पर कार्य किया। पफलस्वरूप अनेक शोधपत्र व पांच पुस्तकें प्रकाशित हुईं। ‘मध्य हिमालय का पुरातत्त्व (1981), ‘मध्य हिमालय खण्ड-1 (1996) तथा ‘मध्य हिमालय खण्ड-2 (2002) पुरातत्त्व के क्षेत्र में चर्चित पुस्तकें हैं। अनेक शोधलेख प्रकाशित। संस्कृति एवं पुरातत्त्व के क्षेत्र में मौलिक योगदान के लिए 1995 तथा 2002 में सम्मानित।

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बी. एम. खण्डूड़ी

60 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किये। मध्य हिमालय और उत्तराखण्ड के इतिहास व पुरातत्व विषयों पर शोध। उत्तराखण्ड में कुछ महत्वपूर्ण पुरातात्विक खुदाइयों का प्रो. कांति प्रसाद नौटियाल के साथ नेतृत्व किया। युवाओं के नाम संदेशः दूर की सोचें और उत्कृष्टता से उसे हासिल करने के लिए प्रयत्नशील रहें।

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प्रयाग जोशी

कुमाउँनी लोक गाथा के तीन संकलनों का, लोक गाथाओं पर शोध से सम्बंधित निबंधें (दो जिल्दों में) का, कुमाऊं की वनराजि जाति पर शोध सर्वेक्षण यात्राओं से संम्बधित एक रोचक पुस्तक का तथा सीरा के मल्ल व चंद राजाओं के समय की बहियों का प्रकाशन।

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अच्युतानन्द घिल्डियाल

पाकिस्तान बनने और गांधी जी के कहने पर स्वतंत्रता संग्राम में कार्य करने का जब कुछ लाभ नहीं दिखा तो राजनीति छोड़ कर 1952 में बी.ए., एम.ए. और पीएच.डी. की। 1970 से अध्यापन और लेखन कार्य में संलग्न। एकला चलो रे के आधार पर संकट झेलकर लेखन कार्य किया और प्राचीन भारतीय साहित्य को प्रकाश में लाने वाले ग्रन्थ लिखे। अब तक 3 दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना।

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