नरेन्द्र सिंह नेगी

उत्तराखण्डी लोक संगीत के सिरमौर।1974 से गढ़वाली लोकगीत/स्वरचित गीत गाने प्रारम्भ किए। 1978 से आकाशवाणी लखनऊ एवं नजीबाबाद के लिए गढ़वाली गीतों का गायन। दिल्ली व अल्मोड़ा केन्द्रों से भी गीतों का प्रसारण। 1982 से अब तक 26 ऑडियो कैसेट रिलीज। पारम्परिक लोक गाथाओं ;‘चक्रव्यूह भारत’ व ‘नौरता मण्डाण’ तथा मांगल गीतों -हल्दी हाथ, भाग 1 व 2 के ऑडियो संकलनों का संगीत-निर्देशन, संयोजन। 5 गढ़वाली फीचर फिल्मों तथा एक वीडियो फिल्म में संगीत-निर्देशन व गायन। उत्तराखण्ड व भारत के अनेक शहरों में मंचीय कार्यक्रमों की प्रस्तुति। अब तक तीन स्वरचित गढ़वाली गीत संग्रह ‘खुचकण्डी’, ‘गाण्यूं की गंगा स्याण्यू का समोदर’ और ‘मुट्ट बोटीकि रख’ प्रकाशित।

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जीत सिंह नेगी

पहले-पहल हिंदी में गेय-गीतों की रचना की। बाद में उत्तराखण्ड की संस्कृति को आधार बना कर गीत लिखे और उनकी धुनें बना कर गाईं। ‘तू ह्नील वीरा…’ अत्यन्त लोकप्रिय गीत रहा। नेशनल ग्रामोफोन कम्पनी, बम्बई में कुछ रिकार्ड तैयार किए तथा बाद में हिज मास्टर्स वाइस एण्ड कोलम्बिया ग्रामोफोन कम्पनी द्वारा गढ़वाली गीतों के रिकार्ड बने तथा गढ़वाली गीतों के टेप तैयार किये। आकाशवाणी व दूरदर्शन के लिए उत्तराखण्ड की संस्कृति, रीति-रिवाजों, समस्याओं व जीवन पर केन्द्रित गीत गाए और आज भी यह क्रम जारी है। ‘भारीमल’ (हिन्दी-गढ़वाली, 1950), ‘मलेथा की कूल’ –1974 (संवाद रिकार्डेड थे) और ‘रामी बौराणी’- बैले, जिसका वे फिल्मांकन करना 2चाहते थे- उनकी ऐतिहासिक रचनाएँ हैं। सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

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