राजीव लोचन साह

घोर विपरीत परिस्थितियों में आर्थिक कठिनाइयों से जूझते हुए छब्बीस वर्ष तक उत्तराखण्ड के प्रतिनिधि पाक्षिक का अविरल प्रकाशन। स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी पत्रकारिता में एक रिकार्ड जैसा है। डॉ. शेखर पाठक, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ व डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट के साथ उत्तराखण्ड का ऐतिहासिक चतुर्भुज बना और हरीश पंत व महेश जोशी जैसे मजबूत स्तम्भ मिले। सैकड़ों मित्रों के सहयोग से इस लगभग असंभव कार्य को सम्पन्न करने में मदद मिली।

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बिहारी लाल

वनवासी सेवा आश्रम मीरजापुर (सोनभद्र) में स्व प्रेम भाई धार ऐंच पाणी ढाल पर डाला चिपको आन्दोलन से 1976 से 9 मई 1977 के मार्ग दर्शन में जीवनआला, ग्रामीण आला और प्रौढ़ शिक्षा के प्रयोग।

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चण्डी प्रसाद भट्ट

सहकारिता आधारित आन्दोलन के प्रारम्भकर्ता, दशौली ग्राम स्वराज्य मण्डल के संस्थापक, ‘चिपको आन्दोलन’ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यकर्ता, पेड़ों को बचाने के साथ वृक्षारोपण तथा पर्यावरण चेतना के आन्दोलन को फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान। दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित। विभिन्न राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय समितियों के सदस्य। वर्तमान में राष्ट्रीय वन आयोग तथा अन्तरिक्ष विभाग की समिति के सदस्य। सैकड़ों लेख तथा अनेक पुस्तकें प्रकाशित।

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गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’

आजीविका चलाने के लिए क्लर्क से लेकर वर्कचार्जी तक का काम करना पड़ा। फिर संस्कृति और सृजन के संयोग ने कुछ अलग करने की लालसा पैदा की। अभिलाषा पूरी हुई जब हिमालय और पर्वतीय क्षेत्र की लोक संस्कृति से सम्बद्ध कुछ करने का अवसर मिला। प्रमुख नाटक, जो निर्देशित किये- ‘अन्धायुग’, ‘अंधेरी नगरी’, ‘थैंक्यू मिस्टर ग्लाड’, ‘भारत दुर्दशा’। ‘नगाड़े खामोश हैं’ तथा ‘धनुष यज्ञ’ नाटकों का लेखन किया। कुमाउँनी-हिन्दी की ढेर सारी रचनाएँ लिखीं । गिर्दा ‘शिखरों के स्वर’ (1969), ‘हमारी कविता के आँखर’ (1978) के सह लेखक तथा ‘रंग डारि दियो हो अलबेलिन में’ (1999) के संपादक हैं तथा ‘उत्तराखण्ड काव्य’ (2002) के रचनाकार हैं। ‘झूसिया दमाई’ पर उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ एक अत्यन्त महत्वपूर्ण संकलन-अध्ययन किया है। उत्तराखण्ड के कतिपय आन्दोलनों में हिस्सेदारी की। कुछेक बार गिरफ्तारी भी हुई।

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अलख नाथ उप्रेती

स्कूली जीवन से ही रंगमंच, सांस्कृतिक गतिविधियों व खेलकूद में भागीदारी। बॉक्सिंग चैंपियन।हाईस्कूल के दौरान मार्क्सवादी साहित्य से परिचय।प्रगतिशील सांस्कृतिक आंदोलन में हिस्सेदारी। विश्वविद्यालयी जीवन में ‘इप्टा’ में सक्रिय। कालांतर में मोहन उप्रेती के नेतृत्व में अल्मोड़ा के विख्यात ‘लोक कलाकार संघ’ के सक्रिय सदस्य। पुरागामी व दकियानूसी मूल्यों के खिलाफ सतत संघर्षरत। 1986 में पहली कुमाउँनी फिल्म ‘मेघा आ’ में अभिनय। 1993 से ‘सांस्कृतिक क्रांति मंच’ के जरिये नौजवानों में क्रांतिकारी उत्तराखण्ड के निर्माण के लिए समर्पित।

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खड़क सिंह खनी

वन आंदोलन तथा शराब विरोधी आंदोलन से कापफी कुछ सीखा। ये दोनों आंदोलन उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के नेतृत्व में चले। उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी पर्वतीय युवा मोर्चा को तब्दील कर बनाई गयी थी।दैनिक हिन्ट, गाजियाबाद, दून दर्पण, देहरादून,उत्तर उजाला-हल्द्वानी, संडे पोस्ट साप्ताहिक तथा सांध्य दैनिक चेतना मंच नोएडा में संपादक। रक्त कैंसर से पिछले 5 वर्ष से लड़ रहा हूँ।

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