गोविन्द सिंह

पाँच-छः वर्ष की उम्र में इलाके के एक मात्र पढ़े लिखे व्यक्ति श्री प्रयाग जोशी को झोड़े-जागर लिखते देखा तो मुझे लिखने की प्रेरणा मिली।आठ वर्ष की उम्र में पिता की मृत्यु और भयंकर गरीबी। दसवीं के बाद भाई के साथ चंडीगढ़ आगमन और पढ़ाई जारी। प्रो. महेन्द्र प्रताप से मुलाकात जिन्होंने जबर्दस्ती हिन्दी विषय लेने को प्रेरित किया और दिशाएं खुलती चली गयीं।

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राजेन्द्र धस्माना

1955 से हिंदी कविताओं की रचना। विविध लेख और समीक्षाएँ भी प्रकाशित। अभी तक काव्य संग्रह ‘परवलय’ प्रकाशित। 1960 से अखबार, प्रकाशकों के यहाँ नौकरी के बाद 1978 तक संपूर्ण गांधी वांगमय में सहायक संपादक 1979 से। समाचार प्रभाग, आकाशवाणी एवं समाचार एकक, दूरदर्शन में समाचार संपादक। 1993 से 95 तक सम्पूर्ण गांधी वांगमय में प्रधान संपादक। 1995 में सेवा निवृत्त। 1993 से 2000 तक दूरदर्शन के प्रातः कालीन समाचार बुलेटिन का संपादन (सेवा निवृत्ति के बाद भी)। 1960 से रंगकर्मी के रूप में भी कार्य किया। आठवें दशक से गढ़वाली रंगमंच के लिए नाटक लिखे, जिनमें ‘जंकजोड़’, ‘अर्धग्रामेश्वर’, ‘पैसा न ध्यल्ला गुमान सिंह रौत्यल्ला’, ‘जय भारत जय उत्तराखण्ड’ के मंचन काफी चर्चित रहे। भवानी दत्त थपल्याल के ‘प्रींद नाटक’ का अपडेटिंग किया, जिसके केवल दो प्रदर्शन हो पाये। कन्हैयालाल डंडरियाल के ‘कंस-वध’ का पुनर्लेखन ‘कंसानुक्रम’ के रूप में किया। ‘भड़ भंडारी माधोसिंह’ का मंचन नहीं हुआ। गढ़वाली नाटकों पर 30 स्मारिकाएं और उत्तराखण्ड पर 9 पठनीय स्मारिकाओं का संपादन किया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और कुछ संस्थानों के लिए 20 से अधिक डाक्युमेंटरी बनाईं। सम्प्रति उत्तराखण्ड लोक स्वातंत्र्य संगठन (पी.यू.सी.एल.) के अध्यक्ष। उत्तराखण्ड के सामाजिक-राजनीतिक जीवन में सक्रिय योगदान मानव अधिकारों के लिए समर्पित।

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पूरन चन्द्र जोशी

प्रोफेसर एवं निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनोमिक ग्रोथ, नई दिल्ली।योजना आयोग में पैनल ऑफ इकोनोमिस्ट्स तथा पर्वतीय विकास सलाहकार समिति के सदस्य। अध्यक्ष, सॉफ्टवेयर प्लानिंग कमेटी-दूरदर्शन, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार।चेयरमैन, भारतीय जन संचार संस्थान तथा नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय से डी.लिट. की मानद उपाधि। अंग्रेजी में 12 व हिन्दी में 7 पुस्तकों की रचना। मुख्य पुस्तकें ‘उत्तराखण्डः इश्यूज एण्ड चेलैंजेज’, ‘उत्तराखण्ड के आयने में हमारा समय’ (2003)।

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