उत्तराखण्ड का लोकसंगीत न्यौली और खुदैड़ जैसे विरह गीतों से भरा पड़ा है। इन गीतों का अधिकांश भाग विवाहित महिलाओं पर आधारित है जो विकट ससुराल के कष्टपूर्ण जीवन को कोसते हुए मायके के दिन याद करती हैं। पहाड़ के गांवों में महिलाओं का जीवन अत्यंत संघर्षशील और कष्टप्रद है। दिनभर खेत-खलिहान-जंगल, मवेशियों और घर-परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर संभालने वाली मेहनतकश, मजबूत नारी को सामान्यत: इतना अवकाश भी नहीं मिल पाता कि वह अपने मायके को याद कर पाये। लेकिन जैसे ही चैत (चैत्र) का महीना लगता है…
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रखड़ि कु त्यौहार छ आज: नरेन्द्र सिंह नेगी
रक्षाबन्धन का त्यौहार भारत में लगभग सभी समाजों में मनाया जाता है। गढवाल, उत्तराखण्ड में इस त्यौहार का पुराना प्रचलित नाम “रखड़ि त्यौहार” है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में इस दिन जन्यू-पुन्यूं (जनेऊ पूर्णिमा) मनाई जाती है, जिसमें मंत्रोच्चार के साथ पुरानी जनेऊ को उतारकर नई जनेऊ धारण की जाती है। इसी दिन देवीधूरा का प्रसिद्ध मेला भी लगता है और वहाँ पाषाण युद्ध भी होता है। भाई-बहन के प्यार को समर्पित इस त्यौहार पर नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने एक सुन्दर गाना गाया है। गाने का संगीत अत्यंत मधुर…
Read Moreधरती हमरा गढ़वाल की
नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने बहुत से ऐसे गाने गाये हैं जो कालजयी हैं, उनको कभी भी सुन लो वो उतने ही प्यारे व मधुर लगते हैं जितने पहली बार सुनने में लगे थे। ऐसा ही एक गाना है “धरती हमरा गढ़वाल की“। इस गाने में उत्तराखंड के एक प्रमुख हिस्से गढ़वाल का जिक्र है और यह भी बताया गया है कि गढ़वाल क्यों इतना महान है। यह गीत ऐलबम “नयु-नयु ब्यो” से लिया गया है इसके ऑडियो व वी.सी.डी. टी.सीरिज पर उपलब्ध हैं। भावार्थ : हमारे गढ़वाल की धरती…
Read Moreहिवांलि कांठि चांदि की बणि गैनि
यह नरेन्द्र सिंह नेगी जी का बहुत प्रसिद्ध और पुराना गाना है। सूर्योदय से लेकर सांझ ढलने तक सूरज की सभी अवस्थाओं का बखान करने के साथ ही नेगी जी ने इस गाने में ग्रामीण परिवेश में रह रही महिलाओं की दिनचर्या को भी खूबसूरती से चित्रित किया है। भावार्थ : चमकता हुआ घाम (धूप) बर्फीली चोटियों पर पड़ता है तो ऐसा लगता है मानो हिमाच्छादित यह चोटियां चांदी की बन गईं हो। सबसे पहले (सूरज की पहली किरण) भगवान शिव के धाम, कैलाश पर्वत पर पड़ती है, फिर उसका…
Read Moreडाल्यूं ना काटा चुचो डाल्यूं ना काटा
उत्तराखण्ड के लोगों के लिये वन बहुत महत्वपूर्ण हैं और इनका संरक्षण यहां की संस्कृति का हिस्सा रहा है। सरकार द्वारा चलाई जा रही वनसंरक्षण और वृक्षारोपण की योजनाएं अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रही हैं, इसका कारण प्रमुखत: यह है कि आम जनता की भावनाऐं इन योजनाओं से नहीं जुड़ पाती है। सेमिनारों और गोष्ठियों में भाषण देकर इन परियोजनाओं में सफलता मिल जायेगी, ये सोचना बेमानी है। वनसंरक्षण और वृक्षारोपण तभी सफल हो पायेगा जब इसके लाभ और अनियन्त्रित वन कटान के दुष्प्रभावों के प्रति जनता…
Read Moreमेरि आंख्यूं का रतन बाला स्ये जादी
नरेन्द्र सिह नेगी द्वारा गाये इस गाने को आप एक लोरी की तरह भी सुन सकते हैं, पर यह गाना पहाड़ों के दुर्गम ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं की कठिन दिनचर्या का परिचायक है। गाने में एक माँ का अपने बच्चे के प्रति स्वाभाविक वात्सल्य व समर्पण प्रदर्शित किया गया है, दूसरी तरफ़ महिला को खेतों-जंगलों और घर के अन्दर के रोजमर्रा के कामों की भी चिन्ता है। महिला सोचती है कि अगर बच्चा थोङी देर सो जाये तो मैं थोड़ा काम निपटा लूं। भावार्थ : हे मेरी आखों…
Read Moreमथि पहाड़ु बटि, निस गंगाड़ु बटि..उत्तराखण्ड आन्दोलन मां
नरेन्द्र सिंह नेगी की कैसेट “उठा जागा उत्तराखण्ड्यूं” से लिया गया यह गाना ऐसे समय पर गाया गया जब पूरा उत्तराखण्ड पृथक राज्य प्राप्ति की मांग को लेकर उद्वेलित था। पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर आजादी से पहले से ही उत्तर प्रदेश के गढवाल-कुमाऊं के पहाड़ी इलाके के लोग एकजुट होकर प्रयास करने लगे थे। लेकिन 1994 में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल व छात्र संगठनों द्वारा शुरु किया गया पृथक उत्तराखंड राज्य के लिये आन्दोलन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण आन्दोलन था। उत्तराखण्ड के लोगों के द्वारा अहिंसात्मक व…
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