शुभा मुदगल

यह सर्वविदित है कि उनके गाये गीतों के दर्जनों बहुचर्चित कैसेट्स, सी.डी. आ चुके हैं। उन्होंने सैकड़ों कार्यक्रम प्रस्तुत किये हैं। संगीत में परम्परा और प्रयोगशीलता दोनों को उन्होंने ऊँचाइयाँ दी हैं। शास्त्रीय संगीत और गायन में उन्होंने बहुत कुछ नया और ताजगी भरा जोड़ा है। कई फिल्मों में संगीत दिया है।

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यशोधर मठपाल

तूरीनो (इटली) में 1995 में गुफाकला के विश्व सम्मेलन की अध्यक्षता, वहीं इंटरनेशनल फैडरेशन आफ रॉक आर्ट आर्गनाइजेशन द्वारा मानद डिप्लोमा। 1999 में पुर्तगाल में एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के सत्र की सह अध्यक्षता। 2001 में मेजो दे साइन्सेज, पेरिस द्वारा आमंत्रित आचार्य। 1959 में बनारस विश्वविद्यालय द्वारा चित्रकला में प्रान्तीय प्रथम पुरस्कार स्वरूप स्वर्णपदक। 1985 में कन्हैयालाल प्राग दास स्मारक समिति द्वारा कलाश्री। 2000 में अखिल गढ़वाल सभा देहरादून व उत्तरायणी मेला समिति द्वारा अभिनन्दन। उत्तरांचल की प्रथम गणतंत्रदिवस संध्या पर मुख्यमंत्री द्वारा प्रशस्तिपत्र व 25000 रु. का पुरस्कार। प्रागैतिहासिक पुरातत्व व लोक कला संस्कृति पर 19 मौलिक पुस्तकों का सृजन। 200 से अधिक शोध प्रपत्र, कुछ कविता संग्रह भी प्रकाशित विन्ध्यांचल, केरल, आन्ध्र, कनार्टक, उत्तर प्रदेश व उत्तरांचल में 400 से अधिक गुफाओं से आदि मानव की कला का शोधन। कई सहस्र चित्रों का सृजन, देश-विदेशों में 25 एकल चित्र प्रदर्शनियाँ, 15 विश्व सम्मेलनों में भागीदारी। उत्तराखण्ड की काष्ठ कला पर विशेष कार्य।

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प्रताप भैय्या

उ.प्र. विधानसभा में सबसे कम उम्र का विधायक, 1957-62। उ.प्र. संविद सरकार में कैबिनेट मंत्री ;स्वास्थ्य एवं सहकारिताद्ध, 1967-68 पर्वतीय विकास परिषद के प्रथम उपाध्यक्ष, 1967-68.

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शीतांशु भारद्वाज

सन 1964-65 तक दिल्ली में ‘हिमाद्रिजा’ पत्रिका का सम्पादन। 1960 से निरंतर लेखन। अब तक राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1200 कहानियां प्रकाशित। कई कहानियों का आकाशवाणी लखनऊ, चुरू व जयपुर से प्रसारण। अब तक 10 उपन्यास, 14 कहानी संग्रह तथा 9 पुस्तकें संपादित। सम्प्रति फाल्गुनी फीचर्स का संचालन।

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सच्चिदानन्द भारती

चिपको जैसे सामाजिक तथा पर्यावरण आन्दोलन के कार्यकर्ता, दूधातोली लोक विकास संस्थान, बिनसर मंदिर समिति, चन्द्र सिंह गढ़वाली स्मारक निर्माण समिति के संस्थापक- संयोजक। कीनिया की संस्था इन्वायरनमेन्टल लियाजो सेन्टर द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सेवक’ पुरस्कार। उफरैखाल क्षेत्र में वन एवं जल संरक्षण का अनूठा प्रयोग जिसने एक सूखी जलधारा के प्राण लौटा दिए। ‘जल तलाई’ नाम से चर्चित यह अभियान वर्षा जल संग्रहण के द्वारा उफरैखाल और आस पास के गांवों के जलस्रोतों का पुनर्संभरण कर सका है। वन एवं जल संरक्षण के बाद ‘ग्राम देवता’ अभियान के तहत श्रमदान द्वारा गांवों में सामूहिकता का चेतना वापस लौटाने का प्रयास।1981 में ‘बदरीकाश्रम’ नामक पुस्तक का प्रकाशन।

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रूप सिंह भाकुनी

टायर प्रदक्षण के क्षेत्र में विशेषज्ञ हासिल की और अमेरीका में 17 पेटेन्ट पंजीकृत कराये। गुड ईयर इण्डिया का अध्यक्ष एवं प्रबन्ध निदेशक बना। जापान, ताइवान, सिंगापुर, थाइलैण्ड, फीलीपींस, आस्ट्रेलिया, मलेशिया आदि देशों में तकनीकी निदेशक के बतौर काम किया। नई तकनीक क्रियान्वित करने का मौका मिला और सराहना भी। ‘गुड ईयर स्पिरिट’ अवार्ड मिला तथा अपने विद्यालय की फुटबाल के कोच तथा फीफा का मान्यता प्राप्त रेफ्री।

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दीवान सिंह भाकुनी

रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय शोध के लिए शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार (1975), सर सी.वी. रमन अवार्ड (1989), रेनबैक्सी रिसर्च अवार्ड (1988), आचार्य पी.सी. राय अवार्ड, प्लेटीनम जुबली लेक्चरर, डा. आर.सी. शाह मेमोरियल लेक्चरर (1993), बी.सी. गुहा मेमोरियल लेक्चरर (1985), डा. शुकदेव एन्डोमेंट लेक्चरर। यू.जी.सी. लेक्चरर (1982) आदि सम्मानों से सम्मानित। इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी, इंडियन एकेडमी आफ साइंस तथा नेशनल एकेडमी आफ साइंस के फैलो।

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