गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाये हुए एक भजन से आपका परिचय हो चुका है। आज प्रस्तुत है उन्ही की आवाज में एक और भजन। यह भजन देवी बाराही के लिये गाया गया है। उत्तराखंड में देवीधुरा नामक स्थान में बाराही देवी का एक प्राचीन मंदेर है। इस मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष रक्षावन्धन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को पत्थरों की वर्षा का एक विशाल मेला जुटता है, जिसे बग्वाल भी कहा जाता है। मेले को ऐतिहासिकता कितनी प्राचीन है इस विषय में मत-मतान्तर हैं। लेकिन माना जाता है कि…
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Information about Uttarakhand Culture (उत्तराखंड की संस्कृति)
घर घरुं आज है ग्ये चहा चूसा-चूस
गोपाल बाबू गोस्वामी ने तरह तरह के गाने गाये हैं। अपने गानों में उन्होंने कई बार सामाजिक विषयों को भी छुआ है। उनका ऐसा ही एक गाना है “घर घरुं आज है ग्ये चहा चूसा-चूस” जिसमें उन्होनें पहाडों में चाय पीने के अमल (लत) के बारे में व्यंगात्मक टिप्पणी की है। इस गाने में उन्होंने उस समय हो रहे सामाजिक परिवर्तनों का जिक्र भी किया है जैसे दूध के उत्पादन का कम, नये लोगों का कृषि कार्यों से मुँह मोड़कर नौकरी के पीछे भागना, टीवी का आगमन और लोगों का…
Read Moreओ आज अंगना आयो री तेरो साजना
“ओ आज अंगना आयो री तेरो साजना” गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा गाया एक विवाह गीत है जिसमें बरात के दुल्हन के दरवाजे पर पहुंचने का चित्रण है। यह गाना दो संस्करणों में मिलता है। पहले संस्करण, जो संभवत: पुराना संस्करण है, में गोपाल बाबू के साथ किसी गायिका की आवाज भी है दूसरे संस्करण को केवल गोपाल बाबू गोस्वामी ने ही गाया है। दोनों गीतों के बोलों में और बोलों के विन्यास में भी थोड़ा अंतर है। दूसरे संस्करण में शहनाई की धुन पार्श्व में बज रही है जो पहले…
Read Moreआज मी के बाटुई लागी, घुट-घुटा गवै मा
रोजी-रोटी के लिये मैदानी क्षेत्रों में पुरुषों का पलायन उत्तराखंड में एक आम बात है।ऐसे में घर की स्त्री, चाहे वह माँ हो, पत्नी हो या बहिन उन्हें घर के पुरुषों की याद आना स्वाभविक है। एक पत्नी को जब अपने पति की याद आती है तो उसकी क्या अवस्था होती है वही “आज मी के बाटुई लागी, घुट-घुटा गवै मा” गाने की विषयवस्तु है। इसी विरह विषय-वस्तु के भाव कैले बजै मुरूली… हो बैणा या घुघुति ना बासा,आमै की डाई मा जैसे गानों में भी मिलते हैं। इस गीत…
Read Moreमेरि आंख्यूं का रतन बाला स्ये जादी
नरेन्द्र सिह नेगी द्वारा गाये इस गाने को आप एक लोरी की तरह भी सुन सकते हैं, पर यह गाना पहाड़ों के दुर्गम ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं की कठिन दिनचर्या का परिचायक है। गाने में एक माँ का अपने बच्चे के प्रति स्वाभाविक वात्सल्य व समर्पण प्रदर्शित किया गया है, दूसरी तरफ़ महिला को खेतों-जंगलों और घर के अन्दर के रोजमर्रा के कामों की भी चिन्ता है। महिला सोचती है कि अगर बच्चा थोङी देर सो जाये तो मैं थोड़ा काम निपटा लूं। भावार्थ : हे मेरी आखों…
Read Moreछैला ओ मेरी छ्बीली..ओ मेरी हेमामालिनी
गोपाल बाबू गोस्वामी ने तरह तरह के गाने गाये हैं। उनका एक गाना है ” छैला ओ मेरी छ्बीली ओ मेरी हेमामालिनी ” जिसमें एक प्रेमी अपनी प्रेमिका की तुलना हेमामालिनी से करता है। निश्चित रूप से तब हेमामालिनी ड्रीम-गर्ल रही होंगी इसलिये प्रेमी अपनी प्रेमिका की तुलना ड्रीम-गर्ल से कर रहा है। आपने “रंगीली चंगीली पुतई जसी” गाने में देखा होगा की प्रेमिका की तुलना किस तरह से अनेक फलों और स्थानीय चीजों से की जाती है वैसे ही इस गाने में भी प्रेमिका की तुलना हेमामालिनी के अलावा…
Read Moreओ परुवा बॉज्यू चपल के ल्याछा यस
“ओ परुवा बॉज्यू, चपल के ल्याछा यस” एक हल्का-फुल्का गीत है जिसमें पति-पत्नी की मीठी नौंक-झौंक के साथ यह बात एक बार फिर स्पष्ट होती है कि पति बेचारा कुछ भी करले उसकी पत्नी उसके काम में मीन-मेख निकालेगी ही 🙂 यह एक भुक्त-भोगी पति ही समझ सकता है। इस गाने में ऐसा ही एक बेचारा पति अपनी पत्नी के लिये चुन चुन कर अच्छे अच्छे सामान लाता है लेकिन उसकी पत्नी हर सामान में कुछ ना कुछ कमी निकाल ही देती है। आइये आनन्द लें इस मनमोहक गीत का।…
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