सूरजभान सिंह

प्रोफेसर (भाषाविज्ञान), केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, दिल्ली, बुखारेस्त पेरिस विश्वविद्यालय में प्रोफेसर, अध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार आदि पदों पर नियुक्त।

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राम सिंह

लखनऊ में अपने सहपाठी लेखक मित्रों के प्रेरणा से स्वतंत्र भारत, नवजीवन, त्रिपथगा, ग्राम्या इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे। तबसे सिलसिला चलता रहा। 1963 में सरकारी सेवा में प्रवेश और जून 1997 को राजकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त। लोक जीवन, पुरातत्व, संस्कृति, भाषा ;बोलीद्ध, स्थानीय इतिहास पर काफी लिखा है। पं. नैनसिंह यात्रा साहित्य तथा चम्पावत के जन इतिहास पर ‘रागभाग काली कुमाऊं’ पुस्तकें प्रकाशित। सुभाष बोस के सैनिकों के अनुभव पर आधारित पुस्तक, नई दिल्ली से प्रकाशनाधीन। कृषि तथा ग्रामोद्योग शब्दावली, भारत तथा अन्य पुस्तकों का लेखन जारी है। देश की राष्ट्रीय एकता हेतु अपने विचारों को रामजनम परजा के उप नाम से पत्र-पत्रिकाओं में लेखन। हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द के लिए समर्पित रहने की उत्कट अभिलाषा है। अपने स्वतंत्र विचारों पर मजबूती से डटे रहने के इरादे से सरकारी नौकरी से निकाले जाने की स्थिति में अपने आर्थिक स्वावलम्बंन हेतु 1976 में स्टील फर्नीचर का उद्योग ‘लौह लक्ष्मी’ स्थापित किया। इससे प्रेरणा लेकर इस समय समूचे पिथौरागढ़ जनपद में बीसियों इकाइयों में स्थानीय उद्यमी कार्य कर रहे हैं। इसे मैं अपनी उपलब्धि समझता हूं कि मेरे काम से प्रेरणा लेकर स्थानीय उद्यमियों में भी उद्योग स्थापित करने की हिम्मत बँधी।

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जयसिंह रावत

ग्रामीण पत्रकारिता पर पुस्तक प्रकाशित| उत्तराखण्ड के प्राकृति संसाधनों पर केन्द्रित पुस्तक में सहलेखन। पंचायती राज, संरक्षित क्षेत्र, स्थानीय निवासी, पर्यावरण, पर्यटन आदि विषयों पर अध्ययन, लेखन व कंसल्टेंसी। यू.एन.आई. समाचार एजेंसीयों के लिए कार्य, महादेवी कन्या पाठशाला पो.ग्रेजु. कालेज देहरादून की पत्रकारिता स्नातक कक्षाओं में शिक्षण (वर्ष 1999)।

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राजिव रावत

उपरोक्त काम एक ऐसे प्रवासी के द्वारा किया गया जिसकी पिछली पीढ़ियां पौड़ी गढ़वाल के अपने गाँव से देहरादून और 70 के दशक के मध्य में कनाडा आकर बस गयीं। राजिव रावत इस नये देश के समर्पित नागरिक की तरह जवान हुआ। यद्यपि एक वर्ष की आयु में विदेश चले जाने के बावजूद मेरा अपने देश और खास तौर पर पहाड़ों की गोद से नाता बना रहा। अमेरिका के कॉरनेल विश्वविद्यालय से जीव विज्ञान में डिग्री लेने के बाद मैं उत्तर अमेरिका के सामाजिक व पर्यावरणीय आंदोलनों से जुड़ाव बना रहा। मेरी अनेक रुचियां उत्तराखण्ड के लक्ष्य में एकाकार हो गयीं। वर्ष 1997 से 2000 में उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति तक मैं एक गैर-पार्टी राजनीतिक समूह ‘उत्तराखण्ड सपोर्ट कमिटी’ का सचिव रहा। अमेरिकी और कनेडियाई उत्तराखण्डियों में सक्रिय यह संगठन उत्तराखण्ड की वेब साइट चलाती थी, एक न्यूज लेटर निकालती थी और अपने उद्देश्य के लिए जागरूकता अभियान चलाती थी। राज्य गठन के बाद मुझे ‘उत्तराखण्ड एसोसिएशन आफ नॉर्थ अमेरिका’ के बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में शामिल किया गया। इसके सबसे कम उम्र के तथा प्रवासी उत्तराखंडियों की दूसरी पीढ़ी का सदस्य हूँ।

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रतन सिंह रायपा

शौका सीमावर्ती जन जाति 1974 का प्रकाशन किया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में शोध पत्रों का प्रकाशन। प्रकाशन का आधार- मानव विज्ञान व पारिस्थितिकी पर अध्ययन, अंडमान निकोबार के ‘आउनजे, करेन, निकोबारीज’, नागालैण्ड के ‘सीमा, रेनगमा, फोम ‘नेपाली’, लाउथा। आदि, उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़ के आठ वर्ग भोटा, जौनसार-देहरादून पर विशेष अध्ययन। पिथौरागढ़ के ‘झानवाल’, ‘लाम डोटी चोटी डोटी’, ब्राह्मण और पिथौरागढ़, अल्मोड़ा तथा गढ़वाल के ठाकुरों पर अध्ययन।

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हरिदत्त सती

1979 में भारत सरकार के मुद्रणालय नासिक तथा नई दिल्ली में हिन्दी अधिकारी के पद पर कार्य करने एवं इससे पूर्व सी.पी.डब्लू.डी. में कार्य करते हुए ‘मुद्रण शब्दावली की पांडुलिपि’ एवं के.लो.नि.वि. का अधिकांश साहित्य हिन्दी में उपलब्ध करावाना।

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शक्ति प्रसाद सकलानी

1958 से 1980 तक उ.प्र. सरकार की सेवा में। स्वैच्छिक अवकाश और लेखन में प्रवेश। 12-13 वर्षों तक रुद्रपुर से एक साप्ताहिक हिन्दी पत्र का संपादन और प्रकाशन। अब तक 4 पुस्तकें प्रकाशित। ‘उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का इतिहास और विकास’ पुस्तक प्रकाशनाधीन। स्वस्थ पत्रकारिता एवं लेखन के लिए रोटरी इंटरनेशनल, रुद्रपुर एवं कतिपय संगठनों द्वारा सम्मानित। उत्तराखण्ड की विभूतियाँ संकलित एवं सम्पादित की।

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