तारा चन्द्र त्रिपाठी

अपने छात्रों से बहुत स्नेह- साहचर्य मिला और निरन्तर मिल रहा है। उनके साथ तथा अकेले भी उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास की खोज में व्यापक पदयात्राओं से अपने अंचल को समझने का अवसर मिला। अनेक शोधपूर्ण लेखों के साथ एक पुस्तक ‘उत्तराखण्ड का ऐतिहासिक भूगोल’ तथा ‘ऑखिन देखी’ ;ललित निबन्ध एवं यात्रा संस्मरणद्ध प्रकाशित। ‘स्थान-नाम व्युत्पत्ति और ऐतिहासिकता’, तथा ‘सिरफिरों को’ (काव्य संकलन) प्रकाशनाधीन।

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अतुल सकलानी

गढ़वाल वि.वि. के संग्रहालय के विकास में सहयोग, उत्तराखण्ड के इतिहास के विविध आयामों पर कुछेक शोध पत्र तथा पुस्तकें प्रकाशित। 16 शोधार्थियों का शोध निदेशन, कुछ फिल्मों के स्क्रिप्ट का लेखन। डिजिटल डाक्यूमेंटेशन लैबोरेटरी की स्थापना। अनेक गाँवों का सामाजिक, आर्थिक सर्वेक्षण। उत्तराखण्ड आन्दोलन में हिस्सेदारी। सम्प्रति- गढ़वाल वि.वि. में इतिहास के प्रोफेसर।

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गिरिराज शाह

1962 में राज्य पुलिस सेवा में सम्मिलित होकर 1974 में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में प्रवेश किया। उत्तर प्रदेश में अनेक पदों पर सेवा करते हुए 1998 में पुलिस महानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त। सेवा के दौरान अत्यन्त संवेदनशील एवं सतर्कता की दृष्टि से प्रमुख स्थानों पर निष्ठा व ईमानदारी का परिचय देते हुए पुलिस बल के लिए आदर्श प्रस्तुत किए। 1990 के दौरान बिजनौर व आगरा में दंगाग्रस्त क्षेत्रों की कानून-व्यवस्था की स्थिति को नियमित तौर पर चलाया।अनेक पुरस्कार व सम्मान प्राप्त किए। उत्तराखण्ड शोध संस्थान के संस्थापकों में एक। ट्रैकिंग तथा पर्वतारोहण में विशेष रुचि। लगभग 14 पुस्तकें प्रकाशित।

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यमुना दत्त वैष्णव ‘अशोक’

मई 1926 में कक्षा 4 में वजीफे का इम्तहान देने हेतु 28 मील की पैदल यात्रा के बाद इम्तहान उत्तीर्ण कर मिडिल कक्षाओं के लिए वजीफा प्राप्त किया। इंटर के बाद कुमाऊं सेंटिनरी छात्रवृत्ति सहित बी.एससी. (आनर्स) किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय स्वर्ण जयन्ती गल्प प्रतियोगिता में प्रथम स्थान।इतिहास, संस्कृति, भाषा विज्ञान आदि क्षेत्रों में अनेक पुस्तकों का सृजन।

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डी.डी. शर्मा

40 वर्ष अध्यापन व 50 वर्ष शोध का अनुभव। भारत-आर्य, तिब्बत- बर्मी व दरद-पर्वतीय भाषाओं में विशेषज्ञता। इसके अतिरिक्त संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, फ्रेंच, जर्मन, पंजाबी, नेपाली, डोगरी, बंगाली, गुजराती, तिब्बती तथा हिमालय की अनेक भाषाओं का ज्ञान। भाषाशास्त्र, प्राचीन भारतीय इतिहास व संस्कृति में विषद शोध। 30 ग्रन्थों व 150 से अधिक शोधपत्रों का प्रकाशन। जवाहर लाल नेहरू फैलोशिप, इंदिरागांधी मैमोरियल फैलोशिप तथा यू.जी.सी. ऐमेरिटस फैलोशिप प्राप्तकर्ता। अनेक शोध परियोजनाओं का निर्देशन। उ.प्र. संस्कृत अकादमी द्वारा संस्कृत साहित्य पुरस्कार। अनेक राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

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अजय रावत

1991-93 में नेहरू स्मृति संग्रहालय और पुस्तकालय, नई दिल्ली के फैलो रहे। इण्डियन काउन्सिल ऑफ सोशियल साइंस रिसर्च नई दिल्ली के वरिष्ठ व्याख्याता। इण्टरनेशनल यूनियन ऑफ फारेस्ट रिसर्च आर्गेनाइजेशन, वियना (आस्ट्रिया) के आप चेयरमैन हैं। अनेक संस्थाओं के सदस्य। ‘हिस्ट्री ऑव गढ़वाल (1358-1947), ‘हिस्ट्री ऑफ इण्डियन फारेस्ट्री (सम्पादित) तथा ‘मैन एण्ड फारेस्ट’ सहित अनेक पुस्तकें तथा दर्जनों शोध पत्र प्रकाशित। अनेक पुस्तकें संपादित। अभी कुमाऊँ विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अघ्यक्ष हैं।

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सत्य प्रसाद रतूड़ी

टिहरी में 1930 में बाल सभा का गठन। 1936 में ‘पाखू’ नाटक छपा। 1939 में ‘साहित्य लता’ का प्रकाशन। टिहरी में सेमियर ड्रैमेटिक क्लब में सक्रिय। टिहरी के सैनिक स्कूल में अध्यापन। प्रजामण्डल की ओर रुझान। इस कारण 1946 में टिहरी छोड़ना पड़ा। 25 जुलाई 1948 से ‘हिमाचल साप्ताहिक’ का प्रकाशन/सम्पादन। यह पत्र 1981 तक चला। ‘सुरकंडा’ (1969), ‘मसूरी संदेश’ (1971), ‘हमारा गढ़वाल’ (1993), ‘गढ़वाल गाथा’ (1996) तथा ‘धरती का जनम’ (2002) का प्रकाशन। अनियमित ‘प्यौली’ का प्रकाशन। अनेक पुरस्कार प्राप्त।

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