हिमानी शिवपुरी

एन.एस.डी. रंगमंडल में 11 साल कार्य; मित्रो मरजानी, साइलेंस द कोर्ट इज इन सेशन, द चेरी आचर्ड, अचदर का ख्वाब, सूर्य की अंतिम किरण से पहली तक जैसे 150 से अधिक नाटकों में अभिनय किया; हमराही, हशरतें, एक कहानी, अरुन्धती, डालरबदू, क्योंकि सास भी कभी बहू थी, कसौटी आदि 100 सीरियलों और हम आपके हैं कौन, हम साथ-साथ हैं, दिलवाले दुलहनियाँ ले जायेंगे, प्रेमग्रन्थ, हीरो नम्बर वन, बीबी नम्बर वन, दिलजले, परदेश, कभी खुशी, कभी गम, मुझे कुछ कहना है, बन्धन, कुछ-कुछ होता आदि लगभग 80 फिल्मों में अब तक अभिनय किया.

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एहसान बख़्श (Ahsan Bakhsh)

कुमाऊं विश्वविद्यालय में बी.एड. परीक्षा में स्वर्णपदक; ग्रामीण क्षेत्र में तीन वर्ष तक अध्यापन कार्य; भारत सरकार के संस्कृति विभाग से जूनियर फैलोशिप; ‘पिथौरागढ़-कैलास मानसरोवर यात्रा पथ’ पुस्तक का लेखन; ‘न्यौली’ सांस्कृतिक समाचार पत्र का संपादन; अग्रणी हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में लेखन; राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल के साथ देश के प्रमुख नाट्य समारोहों में भागीदारी, देश-विदेश के नाट्य निर्देशकों के साथ कार्य।

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शेर सिंह पांगती

शिक्षण-अध्यापन 33 साल। ब्रजेन्द्रलाल शाह के सत्संग में रहने से। ‘जोहार के स्वर’ (1984), ‘उत्तराखण्ड के भोटांतिक’, ‘स्वतंत्रता सेनानी का जीवन संघर्ष’ (1994), ‘मुनस्यारी लोक और साहित्य’ (2001)। दो किताबें प्रकाशनाधीन। दो बार कैलास मानसरोवर, एवरेस्ट बेस तथा न्यूजीलैण्ड आदि स्थानों की यात्राएँ की। मिलम में जड़ी, बूटी उत्पादन का प्रयास। 2002 में अपने सीमित संसाधनों से जोहार पर केन्द्रित संग्रहालय की स्थापना। 1956 से कुमाउँनी रामलीला का दरकोट (मुनस्यारी)में संचालन।

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हेमन्त पाण्डे

प्रारम्भ में कुछ छोट-छोटे विज्ञापनों में काम किया, जो आज के दिन तक 60 हो चुके हैं। कुछ विज्ञापनों में जोकर के रूप में कार्य। 30 टी.वी. धारावाहिकों तथा 20 फिल्मों में काम। अभी मेरी उपलब्धियाँ ऐसी कुछ नहीं हैं मगर मैं दृढ़ निश्चय करता हूँ कि उपलब्धियाँ अवश्य ही आपको दिखेंगी। कृपया इंतजार कीजिये।

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सुधीर पाण्डे

अनेक फिल्मों और टी.वी. धारावाहिकों में अभिनय किया। जिनमें मुख्य हैं- ‘कर्मभूमि’, ‘मनोरंजन’, ‘कालाजल’, ‘अमानत’, ‘तेजस्विनी’, ‘हुकूमत’, ‘ये शादी नहीं हो सकती’, ‘हम साथ आठ हैं’ आदि। 1978 से 1998 तक रंग मंच से जुड़ा रहा।

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निर्मल पाण्डे

युगमंच, नैनीताल से अभिनय की शुरुआत। ‘तारा आर्ट ग्रुप’ लंदन द्वारा रंगमंचीय कार्य कलाप हेतु आमंत्रित। रंगमंच के क्षेत्र में लंदन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, जापान में गहन कार्य। 1997 के ‘कांस’ फिल्म महोत्सव में ‘बैंडिट क्वीन’ के शो के अवसर पर शेखर कपूर के साथ आमंत्रित। फिल्म ‘दायरा’ में ट्रान्स वैसटाइट की भूमिका निभाने पर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का वालेंतिये पुरस्कार पाने वाले विश्व के प्रथम अभिनेता। टाइम्स ऑफ इण्डिया द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में शताब्दी के 100 चर्चित लोगों में शामिल। ‘संवेदना’ नाटक ग्रुप का गठन, जिसका नाटक ‘अंधायुग’ रंगमंचीय जगत में व्यापक चर्चा का विषय बना। एलबम ‘गब्बर मिक्स’ के लिये चैनल वी अवार्ड से सम्मानित। फिल्म टी.वी. के साथ-साथ रंगमंचीय क्षेत्र में सक्रियता से कार्य। । शेखर कपूर कृत ‘बैंडिट क्वीन’ से फिल्म अभिनय प्रारम्भ। फिर आगे बढ़ते चले गये। ‘शिकारी’, ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’, ‘औजार’, ‘इस रात की सुबह नहीं’, ‘दायरा’, ‘हम तुम पे मरते हैं’, ‘जहाँ तुम ले चलो’, ‘गॉड मदर’, ‘प्यार किया तो डरना क्या’, आदि अनेकों फिल्मों में अभिनय। अनेक पुरस्कार तथा कुछ फिल्में निर्माणाधीन। एक एलबम ‘जज्बा’ भी जारी हुआ.

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श्रीश डोभाल

रंगमंच की शुरुआत देहरादून से की; उत्तराखण्ड के विभिन्न स्थानों में रंगमंच को रंगशालाओं के माध्यम से गति देने का प्रयास। ‘शैलनट’ नाट्य संस्था की आठ नगरों- उत्तरकाशी, कोटद्वार, टिहरी, गोपेश्वर, श्रीनगर, देहरादून, हल्द्वानी, रामनगर- में स्थापना; 2001 तक 60 से अधिक नाटकों का निर्देशन तथा 40 से अधिक नाटकों में अभिनय; पांच विदेशी नाटकों का हिन्दी में अनुवाद; लगभग 20 धारावाहिकों व टेलीफिल्मों में अभिनय तथा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त तीन फीचर फिल्मों में अभिनय; भारत में आयोजित 23 अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भाग लिया; हिमालय की सांस्कृतिक विरासत पर कुछ डाक्यूमेंटरी फिल्मों का निर्माण तथा निर्देशन; उत्तराखण्ड व दिल्ली के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, कर्नाटक, उ. प्र., गोवा आदि राज्यों में रंगकर्म कार्यशालाएँ तथा निर्देशन; फिल्म कला व तकनीक पर कार्यशालाओं में कक्षायें। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में विजिटिंग एक्सपर्ट। अनेक संस्थाओं के सहयोग से उत्तराखण्ड की ‘सांस्कृतिक नीति’ का प्रारूप तैयार करके प्रदेश सरकार को प्रस्तुत किया। मानव संसाधन मंत्रालय, सांस्कृतिक विभाग की प्रतिष्ठित सीनियर फेलोशिप प्राप्त की, जिसके अंतर्गत ‘विकलांगों के साथ रंचमंच: संभावनाएं व योगदान’ विषय पर कार्य; ‘रंगमंच में उल्लेखनीय योगदान’ के लिए अखिल भारतीय गढ़वाल सभा द्वारा सम्मानित; 2001 में ‘लक्ष्मी प्रसाद नौटियाल सम्मान’ मिला।

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