शक्ति प्रसाद सकलानी

1958 से 1980 तक उ.प्र. सरकार की सेवा में। स्वैच्छिक अवकाश और लेखन में प्रवेश। 12-13 वर्षों तक रुद्रपुर से एक साप्ताहिक हिन्दी पत्र का संपादन और प्रकाशन। अब तक 4 पुस्तकें प्रकाशित। ‘उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का इतिहास और विकास’ पुस्तक प्रकाशनाधीन। स्वस्थ पत्रकारिता एवं लेखन के लिए रोटरी इंटरनेशनल, रुद्रपुर एवं कतिपय संगठनों द्वारा सम्मानित। उत्तराखण्ड की विभूतियाँ संकलित एवं सम्पादित की।

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मुनिराम सकलानी ‘मुनीद्र’

अब तक विविध विषयों में पाँच मौलिक पुस्तकें लिखीं एवं अनुदित की।नगर राजभाषा कार्यान्वयन पुरस्कार तथा केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद पुरस्कार प्राप्त किए। उत्तराखण्ड शोध संस्थान द्वारा 1999 में ‘साहित्य एवं पत्रकारिता’ के लिए सम्मानित। अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

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उनीता सच्चिदानन्दन

1983 में सी.डी.आर.आई. में वैज्ञानिक बी. की नौकरी। मारुति उद्योग में द्विभाषी के तौर पर 1983-86 तक कार्य। 1986 से अब तक दिल्ली विश्वविद्यालय में जापानी भाषा एवं साहित्य में प्राध्यापिका। 1990-92तक जापान सरकार से छात्रवृत्ति पर शोध अध्ययन। 1999 में जापान फाउण्डेशन फैलोशिप के अन्तर्गत महिला साहित्य पर शोध। दो दर्जन शोध लेख विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित। 15 पुस्तकों का जापानी से हिन्दी में अनुवाद।

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लीलाधर शर्मा ‘पर्वतीय’

स्वतंत्रता संग्राम में लाल बहादुर शास्त्री के सहकर्मी।चार वर्ष से अधिक की दो जेल यात्राएं कीं। 1945 में जेल से छूटने के बाद पत्रकारिता में प्रवेश, दो पत्रों का संपादन, 300 से अधिक लेखों की रचना। अनेक पुरस्कृत पुस्तकों का लेखन व संपादन। हिन्दी समिति के वर्षों तक सचिव। प्रदेश व केन्द्र सरकार की पाठ्य पुस्तकों का लेखन व संपादन। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व उ.प्र. सरकार द्वारा विभिन्न सेवाओं के लिए सम्मानित। 1979 में उ.प्र. के सूचना विभाग में उपनिदेशक के पद से सेवा निवृत्त। अब भी लेखन व सामाजिक कार्यों में सलग्न।

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नन्दा बल्लभ लोहनी

आई.ए.एस. में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुए अनुकरणीय समर्पण भावना और कार्यकुशलता के लिए ‘जी.पी. श्रीवास्तव स्मृति सम्मान’। सेवानिवृत्ति के बाद अभी तक गुजराती भाषा की 10 पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद।

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खड्ग सिंह वल्दिया

1965-66 में अमेरिका के जान हापकिन्स विश्वविद्यालय के ‘पोस्ट डाक्टरल’अध्ययन और फुलब्राइट फैलो। 1969 तक लखनऊ वि.वि. में प्रवक्ता। राजस्थान वि.वि., जयपुर में रीडर। 1973-76 तक वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियॉलॉजी में वरिष्ट वैज्ञानिक अधिकारी। 1976 से 1995 तक कुमाऊँ विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों पर रहे। 1981 में कुमाऊँ वि.वि के कुलपति तथा 1984 और 1992 में कार्यवाहक कुलपति रहे। 1995 से जवाहरलाल नेहरू सेन्टर फार एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च केन्द्र बंगलौर में प्रोफेसर हैं।

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गंगा प्रसाद विमल

तीन दर्जन के करीब पुस्तकें छपीं। देश में रहकर अनेक विदेशी कृतियों का अनुवाद किया। अनेक देशों में वहां के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिए। देश-विदेश के अनेक साहित्य सम्मेलनों में हिस्सेदारी। देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं के संपादक मंडल के सदस्य। बल्गारिया का यावरोव सम्मान, इटली के कला विश्वविद्यालय का सम्मान, पोयट्री पीपुल सम्मान तथा केरल का कुमारन आशान सम्मान से अलंकृत।

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