गोविन्द सिंह

पाँच-छः वर्ष की उम्र में इलाके के एक मात्र पढ़े लिखे व्यक्ति श्री प्रयाग जोशी को झोड़े-जागर लिखते देखा तो मुझे लिखने की प्रेरणा मिली।आठ वर्ष की उम्र में पिता की मृत्यु और भयंकर गरीबी। दसवीं के बाद भाई के साथ चंडीगढ़ आगमन और पढ़ाई जारी। प्रो. महेन्द्र प्रताप से मुलाकात जिन्होंने जबर्दस्ती हिन्दी विषय लेने को प्रेरित किया और दिशाएं खुलती चली गयीं।

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राजीव लोचन साह

घोर विपरीत परिस्थितियों में आर्थिक कठिनाइयों से जूझते हुए छब्बीस वर्ष तक उत्तराखण्ड के प्रतिनिधि पाक्षिक का अविरल प्रकाशन। स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी पत्रकारिता में एक रिकार्ड जैसा है। डॉ. शेखर पाठक, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ व डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट के साथ उत्तराखण्ड का ऐतिहासिक चतुर्भुज बना और हरीश पंत व महेश जोशी जैसे मजबूत स्तम्भ मिले। सैकड़ों मित्रों के सहयोग से इस लगभग असंभव कार्य को सम्पन्न करने में मदद मिली।

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जयसिंह रावत

ग्रामीण पत्रकारिता पर पुस्तक प्रकाशित| उत्तराखण्ड के प्राकृति संसाधनों पर केन्द्रित पुस्तक में सहलेखन। पंचायती राज, संरक्षित क्षेत्र, स्थानीय निवासी, पर्यावरण, पर्यटन आदि विषयों पर अध्ययन, लेखन व कंसल्टेंसी। यू.एन.आई. समाचार एजेंसीयों के लिए कार्य, महादेवी कन्या पाठशाला पो.ग्रेजु. कालेज देहरादून की पत्रकारिता स्नातक कक्षाओं में शिक्षण (वर्ष 1999)।

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जय कृष्ण शाह

पेरिस में अक्टूबर 2002 में अन्तर्राष्ट्रीय ज्योतिष संगोष्ठी में भाग लिया। नव भारत टाइम्स में 1989 से पत्रकार के तौर पर नियुक्त।

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सत्य प्रसाद रतूड़ी

टिहरी में 1930 में बाल सभा का गठन। 1936 में ‘पाखू’ नाटक छपा। 1939 में ‘साहित्य लता’ का प्रकाशन। टिहरी में सेमियर ड्रैमेटिक क्लब में सक्रिय। टिहरी के सैनिक स्कूल में अध्यापन। प्रजामण्डल की ओर रुझान। इस कारण 1946 में टिहरी छोड़ना पड़ा। 25 जुलाई 1948 से ‘हिमाचल साप्ताहिक’ का प्रकाशन/सम्पादन। यह पत्र 1981 तक चला। ‘सुरकंडा’ (1969), ‘मसूरी संदेश’ (1971), ‘हमारा गढ़वाल’ (1993), ‘गढ़वाल गाथा’ (1996) तथा ‘धरती का जनम’ (2002) का प्रकाशन। अनियमित ‘प्यौली’ का प्रकाशन। अनेक पुरस्कार प्राप्त।

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शमशेर सिंह बिष्ट

पहाड़ में रहकर जनआंदोलन व चेतना को बढ़ाने का कार्य आरम्भ किया। सन 1974 से 78 तक वन आंदोलन (चिपको) में सक्रिय रहे और लगातार जेल जाते रहे। 1978 में नैनीताल अग्नि कांड और तवाघाट व गंगोत्री भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्रों में आंदोलन चलाया जिसके कारण स्थानीय लोगों को तराई में जमीन मिली। 1984 में नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन चला, परिणामस्वरूप आबकारी नीति में परिवर्तन। पहाड़ में चले स्थानीय आंदोलनों से जुड़े रहे। टिहरी बांध के विरोध में चले आंदोलन में भी शामिल रहे। 1994 के उत्तराखण्ड आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। 1978 से उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के अध्यक्ष। अब वह उत्तराखण्ड लोक वाहिनी के नाम से जानी जाती है।

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रचना गहिलोत बिष्ट

एम.के.पी. (पी.जी.) कालेज में पत्रकारिता विभाग का श्रीगणेश एवं अध्यक्षता जिसमें महिलाओं में पत्रकारिता के प्रति अभिरुचि एवं चेतना जागृत हुई और उन्होंने पत्रकारिता को व्यवसाय एवं प्रशिक्षण के रूप में ग्रहण किया। पत्रकारिता विभाग की प्रथम अध्यक्षा, भारत सरकार में सम्पादक के रूप में नियुक्ति तथा भारत में सबसे कम आयु में सम्पादक बनने का रिकार्ड स्थापित किया। इग्नू में पत्रकारिता एवं पर्यटन सलाहकार के रूप में कार्य। सम्प्रति- वाइस चेयरपरसन, इण्टरनेशनल काउन्सिल फार वूमेन एण्ड चाइल्ड।

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